देवचन्द्र चौबीसी सानुवाद | Devchandra Chaubisi Saanuwad

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Devchandra Chaubisi Saanuwad by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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&्‌ था।! एक अन्य प्रमाण के अनुसार उन्होने दिगम्बर जेन परम्पराका गोम्मटसार ग्रन्थ का भी अ्रध्यपयन किया था ।2 उन्होने बालिग अवस्था की देहरी पर कदम रखते-रखते काव्य-गास्त्र, भाषा-शास्त्र आदि के साथ-साथ जेन-आगम साहित्य ओर जंन-दशंन का तलस्पर्शी ज्ञान प्राप्त कर लिया था। मात्र उन्नीस वर्ष की किशोरावस्था मे तो उन्होने “ध्यान दीपिका” जैसे आध्यात्मिक, काव्यात्मक एव वेदुष्यपूर्ण ग्रन्थ की रचना कर डाली । देवचन्द्र का ज्ञान-गाम्भीय एव श्रध्यापन वेशिष्ट्य देवचन्द्र का ज्ञान-गाम्भीर्य अथाह था, जिससे प्रभावित होकर धर्म- सघ ने उन्हे उपाध्याय पद प्रदान किया था । यह पद जेन-समाज मे उस मुनि को दिया जाता है जो स्वमत एवं परमत का प्रकाण्ड' विद्वान होता है और सघस्थ मुनियो को अध्यापन कराने में समर्थ होता है। उपाध्याय देवचन्द्र का ज्ञान इतना अगाध था कि देवविलास के रचयिता कवियण के अनुसार उनके पास सैद्धान्तिक अध्ययन एवं तात्तविक समस्याओ का समाधान पाने के लिए अनेक मुनिजन एवं तत्त्वाचितक आते थे। वे भी १. प्रथम षडावश्यक भणे हो लोल, के (ते) पछी जेनशलीनो वास रे । सूत्र सिद्धान्त भणावीया हो, वीर जिन जी ए भाख्या जेह रे । स्वमागे में पोषक थया हो, टाले मिथ्यामत नु गेह रे। अन्यदर्शन ना शास्त्र नो हो, भणवाने करता उद्यम रे । वयाकरण पंच कव्यना हौ, अर्थं करे करावे सुगम्य रे। नषध नाटक ज्योतिष सिख हो, अष्टादश जोया कोषरे। कौमुदी महाभाष्य मनोरमा हो, पिंगल स्वरोदय तोष रे) भाखा (भाष्य) ग्रन्थ जे कर्णता हो, तत्त्वारथ आवश्यक वृहद्‌ वृत्ति हौ । “हेमाचाय ” कृत शास्त्रना रे हो, “हरिभद्र” “जस” कृत ग्रन्थ चित्त रे । षट्‌ कर्म ग्रन्थ अवगाहता हो, कम्मपयडीये प्रकृति सम्बन्ध रे । इत्यादिक शास्त्रे भला हो, जैन अम्नाये कीध सुगन्ध रे । सकलशास्त्र लायक थया हो, जेहने थयु मद्‌ सुद ज्ञान रे । --देवविलास (४. १-६) २. गोमटसार दिगबरी, वाचना करे हित नेह । - वही (ढाल १० से पूवे, दरहा २)




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