अरस्तू के काव्य - सिद्धान्त | Arastu Ke Kavya Siddhant

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Book Image : अरस्तू के काव्य - सिद्धान्त  - Arastu Ke Kavya Siddhant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्‌ “४ * * तो यह स्पष्ट हैं कि त्रासदी ( महाकाव्य की अपेक्षा ) उत्कृष्टतर खा ह ˆ“ “1 ” ( काव्य-शास्त्र, ७४ ) उपर्युक्त उद्धरणो से यह्‌ सर्वया स्पष्ट हं कि-- ( १) कान्य एक कला है। (२) एक मोर संगीत, चित्र आदि (ललित ) कलाएँ জীব दूतरी ओर महाकाव्य, त्रासदी आदि काव्य-कला के विभिन्न रूप अनुकरण के ही प्रकार हैं, अर्थात्‌ समस्त कलछाओ का मूल तत्त्व एक ही है--अनुकरण। (३) इम प्रकार कला जाति है ओौर काव्य प्रजाति, जिसके महाकाव्य त्रासदी जादि व्यष्टि-मेद ह । (४) इन भेद-प्रभेदो के आवार तीन हं--विपय, माध्यम गौर रीति। काव्य की आत्मा उपर्युक्त स्थापना के अनुसार अन्य कला-रूपो की भांति काव्य की आत्मा है---अनुकरण । अनुकरण यूनानी काव्य-शास्त्र का विशिष्ट शब्द है, जिसकी विस्तृत व्याख्या अपेक्षित है । अनुकरण-पिदधान्त अनुकरण यूनानी जब्द ' मोमेसिम ' के पर्याय रूप में प्रयुक्त किया गया है। हिन्दी में वास्तव मे यह्‌ अंगरेजी शब्द इमीटेदन ` का रूपान्तर होकर आया है। यूनानौ भाया मेँ कटा के प्रमग में अनुकरण का व्यवहार अरस्तु का मौलिक प्रधोग नहीं है--अरस्तू मे पूं ष्ठेटो इमी के आधारं पर काव्यं का तिरस्कार कर चुके थे। उनका आरोप था कि एक तो भौतिक पदार्थ स्वय ही मत्य की अनुकृति है--और फिर काव्य तो इन भौतिक पदार्थों की भी अनुकृति होता हैं। अतएवं, अनुकरण का भी अनुकरण होने के कारण वह और भी त््याज्य है। इस प्रकार प्लेटों जौर प्डेटो के भी पूर्ववर्ती यवन आचार्यो ने अनुकरण शब्द का प्रयोग स्यू अर्वर्मे, नकर या ययपत्‌ प्रतिफ़ति के अर्य में किया हैं। उनके अनुसार तिभिन्न ऊन्कार्‌ अगने-जपने माव्यम- उपकरणों के अनुसार भौतिक जीवन और जगत का जनुकरण करने है-- चित्रकार रूप और रण के द्वारा, अभिनेता वेशभूषा, आगिक चेष्टा तया वाणी आदि के द्वारा और कवि भाषा हारा। अरः8ंू ने इसी प्रचलित गाब्द को ग्रहण किया, किन्तु उसमे नया अर्यं मर्‌ दिया} न নি 2 ৪৫৯ =




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