समाज की चिनगारियाँ | Samaj Ki Chingariyan

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Samaj Ki Chingariyan by ज़हूरबख्श - Zahurbakhsh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४७ (७ ২ ¢ ২)/ ২৮ ২৮ ৫১১১০১১১০৫১ नी ৫১১০১ | ८ ८ ্‌ ससाज की चिनगारियाँ एक सुसलसान की आत्म-कथा পাপী পপি साढ़ का महीना था। शाम हो चुकी थी? रिममिम-रिममिम मेह बरख रहा था। में लालटेन जलाकर बराम्दे में बेठा ही था क्रि मेरे मित्र मुन्शी अब्दुल- हमीद्‌ आ पहुँचे । में जिस स्कूल में शिक्षक था, उसी में अब्दुल हमीद भी शिक्षक थे। में कट्टर ब्राह्मण था, अब्दुल हमीद धमंनिष्ठ मुसलमान थे, पर हम दोनों में गहरा स्नेह था। यद्यपि अब्दुल हमीद अपने धमै के अच्छे जाता थे, पर वे कट्टर मुसलमान न थे। हिन्दू-घर्म पर उनकी पूरी श्रद्धा थी। हिन्दी-भाषा पर तो उनका-बड़ो




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