निर्लज्जा | Nirlajja

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Nirlajja by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निर्लज्ञा रेपर बसाहे। सुना है कि किसी कामसे रक्षपाल सिंह अनन्तपुरसे बहुत आगे, घोड़ेसे, जा रहे थे। रास्तेमें बह खान करनेके लिए उसी तालाबपर ठहरे जो हमारे ठाकुरोंके पुरखोंका बनवाया हुआ है। वहोंपर कुमारी राधाको उन्होंने पहले-पहल देखा था।” ..._ “भावी बलवान होता है जैया। नहीं तो अनन्तपुरमें तो सभी रधाके व्याहसे निराश होकर वैठेथे। भख इस ज़मानेमें ठाकुर रघुनाथ सिंहसे उनकी प्रतिक्ञालुसार कोन आता हाथ जोड़कर लड़की मांगने । मगर नही; भगवान जिसको जिसके लिए संवारता है वह. उसे मिलता ही है ।” ९ राधाका पाणिग्रहण तो भाववेश आर प्रेमावेशमें श्रीगढ़के अमीरजादे, नवयुवक, क्षत्रिय कुमार रक्षपाल सिंहने कर लिया, मगर बधूके घरमे आते ही समाज उनके हार्थोसे जाता रहा । यदि आजं कोई बड़ा आदमी राधा. ेसी निनासे १२




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