सर्वधर्म | Sarvadharma
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
56
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१७
नवीन पदाथ उत्पन्न इभा है। यदि कहोगे कि किसी एक पर-
माणुमें चेतनाशक्ति उत्पन्न हुई है तो यह बात युक्तिसे असंगत है।
क्योंकि सयोगका फर सपथुक्त पदार्थेके समस्त भशोमें होता
है।' यदि कहोंगे कि समस्त परमाणु्भोसि भिन्न एक नवीन
पदाथे उत्पन्न हो गया है तो असतके उत्पादका प्रसग जावेगा।
यदि कहोंगे कि समस्त परमाणुओंमे वह शक्ति होगई है तो शरी-
रके समस्त अको काटकर भिन्न करने पर नाक को सूधने-
का काम जिन्हाको चखनेका काम कानको सुननेका काम हाथको
ङिखनेका काम और पैरोकों 'वलनेका काम करना चाहिये था।
जेसे कि एक वोतरु सदिरा किसीने तयार की तो उसमें जो
नशेकी शक्ति हैं वह उसके समस्त परमाणुओंमें हुई है, इसलिये
उसमेंसे अगर किसीको एक प्यालाभी भिन्न करके पिर जवि
तो वह भी नशा करती है। परन्तु शरीरके भिन्न ३ अग इस '
प्रकार कार्य नहीं करते हैं। यदि कहो कि शरीरके अग भिन्न २३
होनेसे वह चेतनाशक्ति नष्ट हो जाती हैं तो मदिराकी नशेकी
शक्ति क्यों नष्ट नहीं हेजाती। यदि कहो कि इश्टन्त सब
संशमं नदीं भिता ते हभमी तो विवाद ग्रस्त अशमें ही मिलान
करते हैं। खैर मानभी लिया जाय कि खण्ड होनेपर वह शक्ति
नष्ट हो जाती है तो अनेक पुरुषोंके हस्तादिक एक २ अग नष्ट
होनेपर शेष अगॉमे नचेतनाशक्ति क्यों दीखती है। और यदि
पंहो कि छोटे ठुकडेकी शक्ति नष्ट हो जाती है और बडेकी नष्ट
नहीं होती सोभी क्यों? हमभी विपक्षमें कह सकतेहै कि बड़ेकी
नष्ट होजानी चाहिये मौर छोटेकी न्ठ नहीं 'होती। तथा छोटे
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