मोक्षमार्ग - प्रकाशक भाग - 2 | Mokshamarg - prakashak Bhag-2

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Mokshamarg - prakashak Bhag-2 by श्रीमान ब्रह्मचारी सीतल प्रसाद - Shriman Bramhchari Seetalprasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पृष्ठ पंकि अशुद्ध शद १७६ १ जर ~+ जु° भण 7) ৭ হত্যা दे युगठ २०० २१ उथय उदय २०१ ৭1 ११२१ ११९१९ ११० २४ ८९३ হই. २११ ৎ ঘাদাঁগ पांचोंका ९१४ ६ जहां नहां १का अकड़ है वहां वहां 3 समझना चाहिये २१९ ८ ९२ (२ २१९ जायुके खानेमे नहां ९ हैं वहां -१ प्रमझवा चाहिये २२८ ७ सेके हुए पञ हुए (| २३६३ २३१४ १६५ भद १९ ३२ ६९६७-८ ४ २६९ १५७ (१३) कमोके नाशक हैं... पाप कमको, शुभ भाव जो मंदऋषपायरूप हैं कें पुण्यक्मओीं बांपते हैं। शुरू भाव नो वीतराग- रूप हैं वे দা नाशक है युभादि स्ने मुभादि तच्छ হাড়া शोक समंतभद्राचाय.. भपूपचदरचयें ` निप्तयोजनं वियोजनं बुद्ध वृद्ध




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