सत्यवादी | Satyavadi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१५) भारतवर्षकी सब जातियाँसे तुलना करनेपर जैन जाति और भी अधिक अज्ञानान्धकारमें डूबी हुईं जान पड़ती है, उसमें नित्य नह २ कुरी- तियाँ जन्म ढेती जाती हैं, ज्ञानके प्रचारका कोई यथेष्ट मार्ग नहीं और अज्ञानके कारण दिन दूने अत्याचार और अनर्थ बढ़ते जाते हैं । उनके दूर करनेका कोई उपाय नहीं किया जाता । ऐसी हाल्तमें जैनियोका क्‍या कप्ेन्य है उसके माननेकी वडी भारी जरूरत है 1 कर्तव्यके ज्ञान करानेका एक मा साधन पन है। जैनी भाई जबतक पत्रोंका आदर नहीं करेंगे-उनका जातिमे प्रचार नहीं करेंगे तबतक अपनी उलन्नतिकी उन्हें आशा छोड देनी होगी। जैनियोको सचेत हो जाना चाहिये और अपनी नरूरतोौंको जानकर उनका जातिमें प्रचार करना चाहिये । यह पत्र खास इसी गर्जसे निकाछा गया है कि वह अपने भाइयोंको जगावे । अब इसकी आधथिक दशाका सुधार करना यह वात आहकोंपर निभैर है । आहरकोको कुछ अपनी गिरती हुई जातिकी अवस्थापर विचार करना चाहिये ओर उसकी उन्नतिका লাম बतानेवाडे इपर पत्रको अपनाना चाहिये । हम आरा करते हैँ कि वे इस जातिसेवकका आदरकर अपनी हितेपिताका परिचेय देगे और इसके आहक बढानेकी जी जानते कोशिश करेंगे । | सप्डेलवालोंका संक्षित इतिहास ५ र्‌ उनकी वर्तमान परिध्थिति। -इतत समय जेनि्योकी नितनी जातियां है उन सनम सण्डख्वार्योकी संख्या सबसे कहीं अधिक है 1 सण्डेकवाढ वर्तमानम रानपूताना,




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