संस्मरण | Sansmran

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कविवर पं० श्रीधर पाठक १७ छिन-छिन निज जोर मरोर दिखावत पर परपर आकृति कोर शछुकावत दन राह बाद श्यामता चढावत वैधव्य वार वामता वढावत यह मोर नचावतं शोर मचावत स्वेत-स्वेत्त बगपाँति उडावत शीतर-सुगन्ध सुन्दर अमन्द नन्दन प्रसून मकरन्दं बिन्दु मिश्रित समीर बिन धीर चलावत अन्धयारि रात हाथ न दिखात, विन नाथ बालविधवा डरात तिनके मन-सन्दिर आग छगावत दिन गर्ज-गजं घुनि लर्ज-छज॑ निज सेन सिखावत, तजं-तजं दुन्दुभी धरणि आकाश छरूचावत्त भहलार राग गावत विहाग रसप्रेमं पाग अहो धन्यभाग सुख पावत मेह भमहाचत आवत । हे चिरदिनी-जन ! चेत करो, धीर धरो-उडाता शलाक सिरपर कमता (मेध) मस्ताना आता है ॥ हे मयूरी, तुम्हारी--आते घोषणा श्रवणकर मेव महाराणा चखा आतता हे । छुलकता बेधडक यह बारिश दीवाना आता है। सुनाया हमने इतना आपको लिख करके सुशफिक भाज यकी है अब तो समझोगे हमें कुछ भी तो आता है ।” इस प्रकारके शरोर भी वीसियों मनोरंजक लेख पाठकजीने “हिन्दी- प्रदीपः मे लिखे थे, जिनमे कितने ही तो उनके नामके विना ही छपे ये] पाठकजीसे नित्यप्रति काफी देर तक बातचीत हुआ करतो थी ) उन बातोके संक्तित नोट मैने अपनी नोट्वुकम ले लिये थे। पाठकजीने कहा---'किसी-किसीका' कहना है कि बाबू मेयिलीशरण ग़ुत्त अच्छे कवि




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