दिवाकर प्रकाश: | Divakarprakash
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
74
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रंधसंसंमुज्नस: : ४
:. झत्तर- शब्दस्तोमनहानिश्रि, कोई आपप्रन््य गही, पा फ्प्पा कोई आपपग्रन्ध नहीं, उससे :सिद्दु करना,
खानी जी के ्रति कुछ/काम नहीं देसक्तो 1 “छषित वावकः०' इस कारिकाको
हमने पूछा था कि किस ग्रन्थ की- है? झपप इसको महाभारत ভীম ३० ।
१ के पते पर लिखते हैं।. हम -ने कलकत्ते के प्रतापचन्द्र तय सुद्रा प्रित महा-
भारत के पुस्तद के देखा तो :उसमें:१० वे अध्याय में वहां केवल ७ श्लोक हैं
उन के आप फी कारिका-का प़्ता-भ्री नहीं प्रत्यत-2 कृष्ण” शब्द भी नहीं।
यदि पुराणों में और विशेष कर-सहासारत में २४४००.के ००००० से ऊपर
चहन्त के कारण: किसी कहाभारतत में यह पाठ निकल सी आते ती महा-
भारत इतिहास:का पुरूतक-दै; व्याकरण वाकोष-वा त्तिरुक्तका नहीं, जिस
को प्रमाण इस विषयमे ठीक-हो । यया प्रस' में भादि.पव भें, लिखाहै कि-
| चति शा्तसाहूखा -च्-भारतस हताम्
। किर २४००० के एक लं. ऊपर बनते जर. मुम्बै केःडपे से कटकतते
के रुप हुवे में भो सहस्तावधि श्लोकों का.अन्तर होते हुवे ऐसे विधादास्पदू
दिषय म चसक प्रमाण हीं श्या। श्प जो “ङषेवण * चणा० -दतीय० प
ओ रुष्ण शब्दं दनातै है वे तौ हमारा पत्तपोषकःहै-कि ^ कष्ण জ্ঞাত অজ
अधीत रहकोकहूतेहै॥ . ১ `
औरर आप जो “रस क्रीडायानू-1 से-राम शब्दःबनाते हैं-से! शब्द-परे
प्ररयः सभी किसी न किसी-घातुं से र्न नाया केरंते हैं परन्तु राम- कृष्ण के
शबतार और ईश्वर होने-में जो प्रमाण সাদ देंगेउसकी उसालो चना हमार
कत्तव्य दोग 1 रूपए करके यह भी लिंखिये कि ^ रषिभ् वाचकः *-के-तल्प
५. इटो पहतं गेहेषु » यह श्लोक भौ किसी आए ग्रन्थक है.? वा “सद्,
क्रलपच प्रसारम् ही है॥ ` ^ च
अब यह प्रसाण सुनिये, शित से ऊर्णावत् सिद करने का उद्योग
किया है। ঘন दिए ए२ १ पं४०9-० 77
यःक्तण्ण: केश्यसुरः स्तेम्ब्रज उत्त ता शिड के। आराया नस्यामुष्धा
भ्यां मेंसदे| भपहन्मसि-॥ :अथवे का*८ अन०३ सू? ६ स? ६
( यः कृष्णः ) जो कंष्ण ( फेश्यछरः ) केशी अहरः केशी असर को तंथा'
/(स्ताम्जज:) स्तेम्बसे उत्पन्ष दावानल को ( उत ) और ( तुस्टिकः ) बकाझुर
को तथा (अरायानसा मुर्फहाउशाम) शकट ঈ दोनों, शोर के भागोंकी (মেষ)
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