दिवाकर प्रकाश: | Divakarprakash

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Divakarprakash by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रंधसंसंमुज्नस: : ४ :. झत्तर- शब्दस्तोमनहानिश्रि, कोई आपप्रन्‍्य गही, पा फ्प्पा कोई आपपग्रन्ध नहीं, उससे :सिद्दु करना, खानी जी के ्रति कुछ/काम नहीं देसक्तो 1 “छषित वावकः०' इस कारिकाको हमने पूछा था कि किस ग्रन्थ की- है? झपप इसको महाभारत ভীম ३० । १ के पते पर लिखते हैं।. हम -ने कलकत्ते के प्रतापचन्द्र तय सुद्रा प्रित महा- भारत के पुस्तद के देखा तो :उसमें:१० वे अध्याय में वहां केवल ७ श्लोक हैं उन के आप फी कारिका-का प़्ता-भ्री नहीं प्रत्यत-2 कृष्ण” शब्द भी नहीं। यदि पुराणों में और विशेष कर-सहासारत में २४४००.के ००००० से ऊपर चहन्त के कारण: किसी कहाभारतत में यह पाठ निकल सी आते ती महा- भारत इतिहास:का पुरूतक-दै; व्याकरण वाकोष-वा त्तिरुक्तका नहीं, जिस को प्रमाण इस विषयमे ठीक-हो । यया प्रस' में भादि.पव भें, लिखाहै कि- | चति शा्तसाहूखा -च्-भारतस हताम्‌ । किर २४००० के एक लं. ऊपर बनते जर. मुम्बै केःडपे से कटकतते के रुप हुवे में भो सहस्तावधि श्लोकों का.अन्तर होते हुवे ऐसे विधादास्पदू दिषय म चसक प्रमाण हीं श्या। श्प जो “ङषेवण * चणा० -दतीय० प ओ रुष्ण शब्दं दनातै है वे तौ हमारा पत्तपोषकःहै-कि ^ कष्ण জ্ঞাত অজ अधीत रहकोकहूतेहै॥ . ১ ` औरर आप जो “रस क्रीडायानू-1 से-राम शब्दःबनाते हैं-से! शब्द-परे प्ररयः सभी किसी न किसी-घातुं से र्न नाया केरंते हैं परन्तु राम- कृष्ण के शबतार और ईश्वर होने-में जो प्रमाण সাদ देंगेउसकी उसालो चना हमार कत्तव्य दोग 1 रूपए करके यह भी लिंखिये कि ^ रषिभ्‌ वाचकः *-के-तल्प ५. इटो पहतं गेहेषु » यह श्लोक भौ किसी आए ग्रन्थक है.? वा “सद्‌, क्रलपच प्रसारम्‌ ही है॥ ` ^ च अब यह प्रसाण सुनिये, शित से ऊर्णावत्‌ सिद करने का उद्योग किया है। ঘন दिए ए२ १ पं४०9-० 77 यःक्तण्ण: केश्यसुरः स्तेम्ब्रज उत्त ता शिड के। आराया नस्यामुष्धा भ्यां मेंसदे| भपहन्मसि-॥ :अथवे का*८ अन०३ सू? ६ स? ६ ( यः कृष्णः ) जो कंष्ण ( फेश्यछरः ) केशी अहरः केशी असर को तंथा' /(स्ताम्जज:) स्तेम्बसे उत्पन्ष दावानल को ( उत ) और ( तुस्टिकः ) बकाझुर को तथा (अरायानसा मुर्फहाउशाम) शकट ঈ दोनों, शोर के भागोंकी (মেষ)




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