दर्शन कथा भाषा | Darshankatha Bhasha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
62
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १७ )
पद्धर-पढ़ाराज, हुकृप्र छाब्ो जु झड़, ন্তন্লল ভুই নন
ही जु सार। सब पहुंचे नगर दुकान जाय, निनसों तब
थे
कते वनाय ताय ॥ १४० ॥ महागज यद्र कांच जे सास.
चक्की
र
सब चलो हील ना करे कोय | इतनी सुन जोहरी न ग,
मने कीनो एसे विचार ॥ १४१ ॥ यह क्रारण फन भयो
ज़ फोयः सवी वुच्वये रेन कोय । मव छुग्क समध्र
परता जे कीन; याको मुविचार करो प्रवरीन ॥ १०२ | अब
इक जुवाब करियो ज॒ सोय, फिर आर जुबाव करो न कोय
विदन्त सेठपर धरों भार, जुरे ज॒ चने दरवार टर ॥
॥ १४३ ॥ सब पहुंचे सो दग्वार जाय, नपने समन्पान करो
यनाय | पाननके वीड़े दिये सोय, जा भूपतिके सनन््मान हो
॥ १४४ ॥ फिर पूछे इंसक्रे तब राय, सब जोहरी बात सुनो
वनाय | गजमोती तुम पढ़ा करेहु, नो दाम छो सो तुरत
लेहु ॥ १४५॥ अव्र होनदार निने ज হী) ताड़ो मटन-
वारो न फोय। अब दोनहारको जोग सोय; दिमदन सदर
एस नरह हेय ॥ ॥ १४६ ॥ अव दी महारात चुनो नो
सोय, गनमोती पा नहिं होय । फिरकर पूछे শী लगे राय,
ताभी धल नाद कराय ॥ १४७ ॥ वसाते घ्रून परै
जाय) परजरे भूत तेसे जछाय। अब तो निज धग धर्
जाहु सोय; रस बातकी चिंता कछु न होय ॥ १४८ ॥ दिन
दोय चार दथ वीस माहिं, छह महिना बरभनभ শ্বলাহি।
गजमोती फट अब दिखें जोय, म खा भरं तवर सच
० फण्
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