पच्चीसवाँ घंटा | Pachchisvan Ghanta

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Pachchisvan Ghanta by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२३ पञ्चीसवाँं घण्टा के घर की श्रोर बढा | निकोलस पोरफिरी के पास जगल के किनारे कुछ पबिकाऊ खेत था। घर के श्रागन के पास पहुँच कर उसने कहा,''में कल श्रमरीका जा रहा हूँ | जब में वापस लौटगा तो मेरे पास तुम्हारा वह खेत खरीदने के 'लिये पर्याप्त पैसा होगा | लेकिन जाने से पहले इस निमित्त मैं तुम्हारे पास कुछ छोड़ जाना चाहूँगा ताकि तुम यह खेत किसी दूसरे को न লী 12) “तुम कब तक बाहर रहोगे १”? “जब तक मैं पर्याप्त नहीं बचा लेता--दो-तीन वर्ष |”? “इत्तना समय बहुत है | तीन वर्ण में तुम आसानी से जमा कर लोगे । क्सीने मी इससे श्रधिक समय नीं लगाया | श्रमरीका मे रूपया -श्रासानीसेश्रा जातादहै |> “मैं तुम्हारे पास क्‍या कुछ छोड़ जाऊे जोन ने पूषा । “मुझे पेसा नहीं चाहिये | तीन वर्ध के भीतर पचास हजार ली -कमाकर ले आश्रो, खेत तुम्हारा है | में इस वीच किसी को नहीं वेचगा। मैं तुम्हारी प्रतीज्ञा करूगा |? लेकिन जॉन ने अ्रपनो पतलून की जेब में से नोटों का एक बण्डल (निकाला रौर उन्हें दरवाजे की सीढ़ियों पर गिना । “यह तीन हजार हैं | तो भी, में ठुम्हारे पास कुछ न कुछ छोड़े ही जाता हूँ ।” जॉन ने सौदे पर मोहर लगाने के लिये निकोलस पोरफिरी के साथ हाथ मिलाया, और चल दिया। श्रभी ऑपेरा नहीं हुआ था। वह उस खेत को ज़रा एक नजर और देख लेना चाहता था, जिसके लिये उसने श्रमी कुछ रुपया रखा था| वह इससे भली भाति परिचित था | उसने इसे श्रसख्य वार देखा था | लेंकिन इस बार यह कुछ सवया भिन्न बात थी | श्रव खेत उसका था} उसे केवल रुपया लाकर ददेनाथा |




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