शान्ति के अमर शहीद श्री शास्त्री | Shanti Ke Amar Shahid Shri Shastri
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
162
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शान्ति मे पसर शहोद धो शासो
মাদন খল के प्रसिद्ध नाटक महाभारत' में उन्होंने लाहार की मूमिका की थी ।
उनके सहपात्यों में त्रिभुवतवारायण सिंह, वालक्षष्ण विश्वनाथ केसकर, अलगू राय
शस्मी भादि प्रमुश्त हें। उन्होंने बचपन से ही राष्ट्र को गुलामी का झनुसव किया
था भोर उसके निवारण फे लिए गांधी जी के नेतृत्व में जिन लोगों ने स्वतंत्रता
प्राप्त फू लिए संघ किया हूँ; उनमें लालबहादुर जी भी प्रमुख थे। काशी विया
पीठ कवल 1शच्चालय ही नहीं शपितु वर्तमान नेताप्रों के वीद्धिक सृजन का भी केंद्र
विगत कई द्शावदयो से रहा हैँ । लालबहादुर जी के गुरुजनों मे डा० संपूर्णानंद,
अमचंद, ढा० भगवानदास जी, भ्रौ प्रकाश एवं घाचायं वीरल सिद्द ५मुख हैं । पं०
निप्कामर्वर् (मन्न जेस सफल पब्रध्यापकों ने अपनो मंत्र शवित से लालबहादुर जो और
ভলন। (লগা का संस्कार किया था | गुरुजनां के संसर्ग के कारण हा शाघ्त्री जो श्रपने
मदस्य नोःतवत्ता भौर वैर्यके साथ उक्त शोषं स्थान पर पहुंचे जहां पहुचने को
कल्पना उन्होंने अपने आरंसिक जीवन मे कदापि मी वे की थी। वे कनि स
गु এ जनक कारण शास्त्रों जी जीवन भर पं० जवाहर लाल नेहरू शोर হোআন
पुरुपात्तम दाव टंडन के ससाव थप्ियपान्न रहु ? दानो सारत क दा च्नुच थे | विश्चित
स्प से शास्त्रों जा सबको सुतत थे वाइते किसा की किसो से नहों थे। वे अमल
करते थ शोर जब सा जेसा निश्चय कर लेते थे उसा पर अ्रडिय रहते थे । जब
दय म स्वराज्य ए भानदालन चल रहा था, तब दशमवित को भावना से सिति
हाकर लालबहादुर जा ने काशों में लाकमान्य तिलक का दर्शन किया श्ौर महात्मा गांघो
के आह्वाव पर काशो। क जिन नवसु वक-नेताओं ने अपने सर्वेस्व बलिदान का काय॑
प्रारंस किया था उनम लालवहादुर जी भी थे। शास्त्री जी ने दशन का विशेष
अ्रध्ययत्त किया था । कबीर से वे विशेष प्रभावित थे। उनका जीवन सादा था।
विचारों मे वे उच्च थे शौर श्राजीवन दिये गये उत्तरदायित्व के प्रति दत्तचित्त
लगन से उन्होंने समी कार्य किया। प्रदर्श श्नौर दिखावा ये दो ऐसे श्रवगुए
है, जिचदा लगने पर बरबादी को झादत पड़ जाती है । शास्त्री जी इन दोनों श्रादतों
से बहुत ही दूर थे। सन् १६२१ में उन्होंने ढाई वर्ष को जेल याना की श्रौर
जेल से छूटने क॑ बाद पुन; विद्यापीठ से शास्त्रों की उपाधि श्राप्त किया।
» सन् १६२६ में शास्त्री जी मे सर्वेस्ट्स ध्राफ पिपुल्स सासाइठी, की आजीवत
सदस्यता स्वीकार कर ली झौर इलाहाबाद चले. भाये । यहाँ उन पर लाला
लाजपतराय का भौ प्रमाव पडा | प्रयाग को ही उन्होंने अपना कार्य छोत्र बनाया 1 २३
वर्ष की झायु में मिर्जापुर में -लजिता देवी से उनका पाणिग्रहण हुआ । उनके चार
पत्न भौर হা पुत्रियाँ हैं। शास्त्री-जो इलाहाबाद कार्पोरेशन के संदस्य भी सुने गये
ते शौर सात्त वर्पो तक प्रयागः को जनसेवा भी उन्होंने की थी | इलाहाबाद इंप्ूमेंट
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