दिल्ली जैन डायरेक्टरी | Delhi Jain Directory
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
306
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका 68284925251 ০০০০৬০৩০০১০ ঘন
পি
उक्त सभी महानुमावों तथा विज्ञापनदाताभं के, जिन्होने श्रपने विज्ञापन देकर उदारता का परिचय दिया
झौर डायरेबटरी के प्रकाक्षन को सुलभ किया, हम हादिक झ्ाभारी हैं ।
डायरेक्टर के मुद्रक जयन्ती प्रेस के व्यवस्थापक पार्टनर श्री एम० झर० कुमार भौर उनके फोरमेन श्री
बिहारी लाल ब श्री जगदीश जी का आदि से अनन्त तक बराबर सहयोग प्राप्त होता रहा । मुक प्रसन्नता है, कि डायरे-
बटरी को भ्रच्छे से भ्रच्छे ढग मे प्रस्तुत करने का उन्होने पूरा प्रयास किया है।
प्रन्त मे, मैं व्यवस्थापन व सम्पादन मंडल के चेश्ररमेन तथा सदस्यगण का अत्यन्त ही आमारी हू, जिनके
अ्यत्नो से यह कार्य सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ । इस कार्य मे हमारे प्रधाव श्री शिवदयाल सिंह जी की भ्रारम्भ से ही
हावि रही और उन्होने पग-पग पर हमारा मार्ग-दर्शन किया । जब भी हमने कमज्ञोरी अनुभव की, उन्होने हमारा साह
बढाया श्रौर ब्रदूवंप्ेरणादी । यथ नही, सामग्री के सङनन, विज्गापनोके प्राप्त करने प्रादि सभी कार्यो मे सक्रिय रूप
से सहयोग दिया ।
व्यवस्थापन मंडल के चेञ्ररमेन लाला डिप्टीमल जी तो इस सम्पूर्ण योजना के पीछे शवित स्रोत रहे है। वे
तयोवृद्ध है, किन्तु उनका उत्साह युवकों से कहीं भ्रधिक है। शहर के उद्योग व्यापार भादि की जानकारी का एकत्रित करना
दुस्तर कार्य था और उससे भी भ्रधिक था प्रकाशन के निये पःच हजार रूपये की धनरादि एकचित करना । लाला जी ने
लोगो से बारबार कहा, टेलीफोन पर प्रनेको ही बार स्मरण करवाया श्रौर जानकारी प्राप्त करज्राई । श्रपने व्यक्तिगत
सम्पर्कों से ही लगभग दो हज़ार के विज्ञापन तो उन्होंने टेलीफोत पर ही सुरक्षित कर दिये और शेष राशि के लिये
हमारे साथ चलने मे भी सकोव नही किया । डायरेक्टरी की सामग्री को क्रम से व्यवस्थित रूप देने मे उनका ही प्रमुख
हाथ है । लाना जी ने इस दुस्तर कार्य को सम्पन्न करने में जो युवकों सदृश परिश्रम किया वह भ्रद्धितीय है। इस
में कोई ग्रतिशयोक्ति नहीं कि लाला जी के ही अनवरत् प्रयत्तों का ही परिणाम है कि यह डायरेक्टरी श्रौर वह भी इस
रूप मे प्रकाश में श्रा सकी ।
श्री श्रादीश्वर प्रसाद जी एम० ए० (यू० पी० एस० सी०) का सहयोग तो इतना विस्तृत रहा है कि इस
सम्पूणं कायं का कोई भौ ठेस पहलू नही जिस पर उनकी छाप न हो । योजना, सामग्री सकलन, प्रकाशन व्यवस्था, विज्ञा-
पन प्राप्त करने प्रादि सभी कार्यो मे वह मेरे साथ रहे हैं ।
इस कोयं मे भाई टेकचन्द्र जो, मित्र श्री सतीश कुमार व श्री वकोलचंद्र का पूरं साहाय्य प्राप्त हुआ है, एतदथं
मैं उनका हादिक श्राभारी हूँ । इतने विश्वद क्षेत्र का यह प्रथम प्रयास है । भ्रनेक प्रयत्नो के बावजूद भी बहुत सी
कमिया रह.) है। खेद है, कि हम डायरेक्टरी मे उतनी सामग्री नहीं दे सके है जितनी होनी चाहिये थी 1 हम उन सभी
महानुभावो से क्षमा प्रार्थी है जिनके बारे मे इसमे जानकारी उपलब्ध नही को जा सकी है । समाज के सहयोग भर
सद्भावना से यह् डायरेक्टरी प्रकाश मे श्रा सकी भौर उसी सहयोग व॒ सदभावना से भ्रागामी सस्करणो मे
इसकी अपूर्णाता तथा अन्य कमियो को दूर किया जा सकेगा, ऐसा विश्वास है ।
ग्राज का युग सहकारिता का युग कहा जाता है। प्रस्तुत प्रयास सहकारिता के उस अनुपम भिद्धांत
के महत्व की एक भलक है। यदि इस डायरेक्टरी मं दो गई जानकारी समाज में सगठन और सहकारिता की
भावना क। सचार कर सके, तो यह प्रयास सफल होगा ।
नयी दिल्ली, चक्रता कुमार
कातिक कृष्णा चतुर्दशी मत्री, जेन सभा नयी दिल्ली
, चीर निर्वाण सम्बत् २४८
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