राम वांग्मय भाग २ | Ram - Vangman Vol-ii

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राम-वनगमन ] [७ अयोध्या में--शाम की जन्मभूमि में और जहॉ सीता प्राकर बसी थी वहा चुद्धिमती स्त्रियों का होना साधारण बात है । स्त्रियों ने सोचा--रानी चाहे समझे या न समझे, पर अपनी गॉठ की अक्‍ल गैवाना टीक नहीं है। अगर हम सब ग्रलग-ग्रलग वातत करते लगगी तो किसी भी वात का फैसला नहीं हो पाएगा । इसके अतिरिक्त ऐसा करने से हम वुद्धि- हीना समझी जाएँगी । श्रतणच हम में से कोई चुनी इई सिर्यो ही वात करें। शांतिपूर्वक वात करने से ही कोई तत्त्व निकल सकता है | इस प्रकार निश्चय करके नारीमंडली केक्रेयी के निकट पहुँची । इस मडली में जो विशेष चुद्धिमती और केेयी की सखी भी र्थी, वदी चानचीत करने के लिप नियत की गई शीं। चह ककेयी से वात्त करते लगीं । कोई झादमी समझाने वाले की वात माने या न माने, मगर समगझाने वाले को अपनी गांठ की प्रकल नहीं वानी चाहिए। मतलब यह है कि जिसे समझाया जा रहा है बह कदाचित न समझे तो भी समझाने वाले को अपना बये और पनी शाति नहीं खोना चाहिए । प्रगर समझाने बाला चिद जाएगा तो चह अपनी सांठ की चुद्धि गेया वेटेगा । समझाने बाली स्लिया समझाने का ढेंग जानती थीं । थे पहले पहल कतयी के रील छ सराहता करने लगी! एफ्से




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