आयार सुत्तं | Ayar -suttam

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Ayar -suttam by महोपाध्याय चंद्रप्रभसागर - Mahopadhyaya Chandraprabhasagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२१० श्र अथवा अधो दिशा से आया हूं, अथवा जन्‍्यतर दिशा से या णनुदिशा, विदिशा से आया हैं । इसी प्रकार कुछ लोगो को यह ज्ञात होता है-- मेरी आत्मा ओपपातिक ह, जो इन दिशाओं या अनुदिशाओं मे व्चिरण करती है । जो सभी दिशाओ और सभी अनुदिशाओं में आकर विचरण करती है, वही मैं/आत्मा हूं । वही णात्मवादी, लोकवादो, फमेवादी और ज़्ियावादी है । मेने किया की, मैने करवाई और करने वाले का समर्थन करू गा | ये समी त्रियाए लोक मे कमे-चन्धन-रुप ज्ञातव्य है निश्चय ही, कम को न जाननेवाला यह पुरुष इन दिशाओं एवं अनुदिशाओ में विचरण करता है सभी दिशाओ और सभो जनुदिशाओं मे जाता है, अनेक प्रकार की योनियो से सम्बन्ध रखता है, अनेक प्रकार के प्रहार का अनुमव करता है 1 निएचय ही, इम विपय मे भगवान्‌ ने प्रजापूरवंक समकाया है 1! और इस जीवन के लिए प्रघसा, सम्मान एच पूजा के निए जन्म, मरण एव मुनित > लिए दुखोसे छूटने फे रिए [ प्राणी रम-चन्धेन को प्रदूत्ति करता है 1] ये सभी त्ियाएं लोव में कम वन्धन रुप ज्ञात्व्य है 1 जिस छोक मे वर्म-वन्यन की ज़ियाएं जात है, वहीं परिज्ात-कर्मो [ हिसा- त्यागी | मुनि है 1 “ऐसा मैं कहता हू । घत्-पो ला ७




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