गहरी पर्त्त के हस्ताक्षर | Gahari Part Ke Hastakshar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
242
श्रेणी :
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No Information available about पानमल जी सेठिया - Panmal Ji Sethiya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्तुत दैनंदिनी में आपश्री के अनुभूतिमूलक चिन्तन-करणों का संकलन
है और हैं गहरी पत्त के वे हस्ताक्षर जो आत्मनू की दिशा में गति प्रदा
करते हैं । वे हस्ताक्षर नितान्त ग्रनुभूतिं के अक्ष हैं--किसी ग्रन्थ के उद्धरण
नहीं । हाँ, इस श्रालेखन् में तत्कालीन वातावररं एवं भाषा का प्रभाव,
. अ्रवश्य अंकित हुआ. है । अपने देहली प्रवास की अनुभूतियों के लेखन में वहाँ
की उद मिश्चवित हिन्दी भाषा का प्रभाव पाठकों को यत्न-तत्र पंरिलक्षित
होगा ।
यहाँ पाठकों का ध्यान इस बात की ओर विशेष आकर्षित करनी चाहूगा
कि इन अनुभूतिमुलक चिन्तनकरणों में आचायंप्रवर के मुनिजीवर्न (सत्र
1951) के चिस्तनकण भी हैं, जिनमें प्राचायंश्री के व्यक्तित्व एंवं साधने
की ऊपाकालीन (9 वर्ष की दीक्षापर्याय की) ऊध्वेमुंखी चेंतनां के स्पष्ट
दर्शन होते हैं। साधना के वसन््त में ही आचायेश्री कितने ऊर्जस्वेल चिन्तन-
प्रधान व्यक्तित्व के स्वामी थे, यह वोध होता है आ्राचायंश्रीं के ईनं चिन्तन-
कंणों से। इन अनुभूति के ग्रेक्षों को मोटा-भोटी चार वर्गों में विभे्त
किया जा सकता है :-- '
1) श्रात्मानुशातन- साधक का মুল चिन्तन स्वभावतः स्व-केन्द्रित
होता है । इस कृति में कुछ चिस्तंनकेंणा आचायप्रवर के अपने संाधंनाकारू
के हैं, जो श्रपणी साधना और विकास के विभिन्न सोपानों पर अपने मन के
उदुबोधित एवं सचेत करने से संम्बेद्ध'हैं । इन उद्बोधनीं की शैली:अनूठी है,
अतः उपदेशात्मक प्रसंगों से इन्हें सहजतया अ्रलग करके देखा जा सकता हैं ।
.....(2) सोपान-निरूपण-जेखक--आचायेप्रवर ने साधनाकाल में उत्थान
के विभिन्न स्तरों का अनुभव किया और उन पर आने वाली वाधाओं को
स्वरूप-विवेचन द्वारा पहचाना भी है। साथ ही साधना-क्रम मे उनके
निराकरण के लिए सूक्ष्म विधान का विवेचन भी कर दिया है।
(3) নিলে झनुभव - अनेक प्रसंग आचार्यश्रवर की उन अनुभूतियों
के प्रिचायक हैं, जो प्रात्मदशियों की उपलब्धियों को संकेतित करते हैं। इत
तलों पर यह प्रत्यक्ष हो जाता है कि जगत और स्वप्न-जगत भी किस प्रकार
आध्यात्मिक सत्य के ही सन्देशवाहक हो जाते हैं ।
(4) विवेकबत्त--प्राचार्यप्रवर ने अनेक स्थलों पर वैचारिक धरातल
के आधार पर अनेक प्रसंगों का तत्त्वनिरूषण भी किया है। ये चत्त जितने
सही साधनामार्ग पर उत्तरने वाले हैं, उतने ही सही सामान्य जोबनतल
पर भी उतरने वाले हैं ।
(मर)
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