बच्चन का परवर्ती काव्य | Bachhan Ka Parivarti Kavya

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Book Image : बच्चन का परवर्ती काव्य  - Bachhan Ka Parivarti Kavya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बुद्ध और नाचचर बच्चन ने 'प्रणय पत्रिका” के एक गीत में लिखा ইঁ मार होती है बड़ी सबसे समय की | ख्याल पर, श्रव देखता हूँ तुम न वहु श्रव, मैन वहु श्रव, वहु न मौसम, वहु तबीयत, वह्‌ जमाना इसीसे मिलती-जुलती बात शरारती श्रौर अंगारे' के एक गीत की इन पंक्तियों में है-- स्वप्न. का वातावरण हर चीज़ के चारों तरफ़ मानव बनाता लाख कविता से, कला से पुष्ट करता ग्रंत में बह टूट जाता सत्य की हर शक्ल खुलकर आ्ाँख के ग्रन्दर निराशा भोकती है सत्य और समय का অই प्रभाव बच्चन को परवर्ती काव्यरचना पर खूब पड़ा है । यह प्रभाव कहाँ से पड़ता शुरू हुआ है हम इसका संकेत श्रन्यत्र दे चुके हैं। अब उनके काव्य-संकलन बुद्ध और नाचघर' को लेकर परवर्ती काव्य-रचना का विवेचन प्रासंगिक होगा । ... बुद्ध और नाचघर' बच्चन के काव्य में एक अभिनव मोड़ का सूचक है। इस संकलन से ही कवि का बदला हुआ स्वरूप भरे-पूरे रूप में सामने झाता है । इस दुष्टि से बच्चन के काव्य में घटित परिवर्तन को हम तीन भागों में बाँट सकते हैं--- १. छन्दगत परिवर्तन २. विषयगत परिवतंन १. छुन्दगत परिवतन शेलीगत परिवर्तेन में ही अन्तभ्नुक्त हो सकता है। लेकिन छन्द कविता का अपेक्षाकृत अधिक वाह्मय रूप है इसलिए उसका उल्लेख अलग से किया जा रहा है । शेली का, छन्द की तुलना में, कविता के विषय से अधिक पनिष्ठ संबंध होता है |




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