साहित्यिक संस्मरण | Sahityik Sansmaran

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ हम लोग युसुपोव पार्क में टहल रहे थे। बड़े उन्मुक्त भाव से वह मास्को के कुलीन घरानों की नैतिकता के बारे में बाते कर रहे थे । फूलों की एक क्यारी पर लगभग पूरी शुकी हुई एक प्रौढ रूसी युवती ग्रपनी हाथी जैसी यगो को खोले, भारी-भरकम स्तनो को भरुलाती, काम कर रही थी । तोल्सतोय उसकी ओर बड़े ध्यान से देखते रहे-। “कुलीनों का समस्त वेभव और ऐश्वर्य इस जैसी स्तम्भ-बालाओं के बृते पर ही टिका था; केवल किसानों, किसान-युवतियों, उनके लगान श्रादि पर ही नहीं, वरनु शब्दश: जनता के रक्त पर टिका था । ये कुलीन समय-समय' पर थदि इस जैसी घोड़ियों से समागम न करते तो वे कभी के नष्ट हो गये होते । मेरे युग के नोजवानों की भांति अब बिना आत्म- हानि के जवानी का अपव्यय' नहीं किया जा सकता । किन्तु जवानी के मजे लेने के बाद कुलीनों में स्रे बहुतों ने किसान बालाओं से विवाह कर लिया और अच्छी सन्‍्तानें पैदा कीं। इस प्रकार, यहां भी किसान की शक्ति ही काम आयी । हर जगह यह्‌ काम आती है । कुलीनों की आधी पीढ़ी आत्म-सुख में अपनी शक्ति गंवा देती है, बाकी आधी देहाती जनता के गाढ़े खून में अपना खून मिलाती है, ताकि वह भी थोड़ा पतला हो जाय । उनकी जाति के लिए यही अच्छा भी होता है । শু फ्रांसीसी उपन्यासकारों की भर्भाति स्त्रियों के बारे में बातें करने में उन्हें बड़ा आनन्द आता है, किन्तु सदा रूसी किसान की उस भोंड़ी शब्दावली में जो मेरे कानों को अप्रियः लगती है। आज बादाम के कुंज में घुमते हुए उन्होंने चेखोव से पूछा : “जवानी में क्या तुम बहुत विषयी रहे हो ? ” ए. पी. बड़ी मासूमियत से मुसकराये और कुछ बुदबुदाते हुए अपनी छोटी-सी दाढ़ी सहलाने लगे। तोल्सतोय ने सागर पर ही दृष्टि गड़ाये हुए स्वीकार किया: ९३




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