श्री उत्तराध्ययन सूत्र भगवान महावीर का अंतिम उपदेश | Shri Uttaradhyayan Sutra Bhagawan Mahavir Ka Antim Upadesh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
168
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)९: विनपशरुत | ও
आचायंदेव को হতে जान, मृदु प्रिय बचनों ते तुष्टं खरे]
ऐसी होगी फिर भूल नहीं, अंजलि जोड़ें उपशान्त करें ॥5१॥
पर्माजित व्यवहार सदा, आचार्यो ने आचरण किया।
गहू को प्राप्त नहीं होता, जिसने बेसा आनार किया ॥४२॥
भाव सनोगत और वाक्यगत, रुर्वाणी का যুগে কই
भाव समझ कर पार्यरूप दे, आज्ञा को स्वीवर কই ই
पिनय - भाव से হয়ান प्य, जो বিনা प्रेरणा कार्य करे।
यथादेश सलार्यं নই, নিন ননী ন লা ভীল परे 1८४
प्रातं जानरार विनय करें, उसकी जग महिमा होती हैं
विनमी भी घर्माक्षय वैसे, ज्यों शरण जीव भृ होती है ॥४४॥
पूज्य प्रस्त होते उस पर, ये पूवं विनय परिचित होते।
सोर बिपुल मोक्ष मूलक उसको, श्त ज्ञान लाभ हो छुत देत {हा
পু ॐ गुद व्क ॥ पमं হাহা ০
सास्य - पृज्य संशम - विदीन, मय भक्त कम सम्पदयुत हो ।
पते पात दिस्य षद है पाता, तप और समाधि - संसुत्त हो ॥४5॥
सूर च भूर হালা ५ ¢ = त् क 4 वति घन ~
४९ ^ न्प से पृजित, मर पक राचत गट तन न भार !
शाखत মিরা লিলালা पा, दपु ह्म मुद्ध देख अपर ॥८८॥
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