देवसी राय प्रतिक्रमण | Devsi Rai Pratikraman

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Devsi Rai Pratikraman by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ १० ] १७)१०-भ्रान्तिमूल् र्यो १ ०-इस लिये कि ज्ञान, सुख, दुःख, हषं, शोक, शरदि वृत्त्यौ, जो सन से सम्बन्ध रखती दै; वे स्थूल या सदम भौतिक वस्त्रों के आलम्बन से 'होती हैं, भोतिऋ चस्तुएँ उन बृत्तियों के होने में साधनमात्र अथोन्‌ निमित्तफारण हैं, उपादानकारण$ नहीं। उन का उपादानकारण आत्मा तत्त्व अलग ही है। इस लिय भौतिक वस्तुओ को उक्त वृत्तियों का उपादानकारण मानना धन्तिदहै। = (१८)प्र०-ऐमा स्यो माना जाय उ०-ऐमा न मानने में अनेक दोप आते है । जते सुखदुः, सूज-रंक भाव, छोटी-बड़ी आयु, सत्कार-तिरस्कार, क्ञान-अज्ञान स्यादि अनेक विरुद्ध भाव एक ही माता- पिता की द्वो सन्‍्तानों में पाये जाते हैं, सो जीव को स्वतन्त्र तत्त्व बिना माने किसी तरह असन्दिग्ध रीति 'से घट नहीं सकता | | जो कार्य स भिन्न दो कर उस का कारण बनता है वह निमित्तकारण बहलाता है ] जैसे कपड़े का निमित्तदारण पुतलीघर । है जो स्व है। कार्येदप में परिणत होता द वह उस कार्य का उपादान- कारण कहलाता दे ] जैसे कपड़े का उपादानकारणय আল)




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