देवसी राय प्रतिक्रमण | Devsi Rai Pratikraman
श्रेणी : अन्य / Others
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
290
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand){ १० ]
१७)१०-भ्रान्तिमूल् र्यो १
०-इस लिये कि ज्ञान, सुख, दुःख, हषं, शोक, शरदि
वृत्त्यौ, जो सन से सम्बन्ध रखती दै; वे स्थूल या
सदम भौतिक वस्त्रों के आलम्बन से 'होती हैं,
भोतिऋ चस्तुएँ उन बृत्तियों के होने में साधनमात्र
अथोन् निमित्तफारण हैं, उपादानकारण$ नहीं। उन
का उपादानकारण आत्मा तत्त्व अलग ही है। इस लिय
भौतिक वस्तुओ को उक्त वृत्तियों का उपादानकारण
मानना धन्तिदहै। =
(१८)प्र०-ऐमा स्यो माना जाय
उ०-ऐमा न मानने में अनेक दोप आते है । जते सुखदुः,
सूज-रंक भाव, छोटी-बड़ी आयु, सत्कार-तिरस्कार,
क्ञान-अज्ञान स्यादि अनेक विरुद्ध भाव एक ही माता-
पिता की द्वो सन््तानों में पाये जाते हैं, सो जीव को
स्वतन्त्र तत्त्व बिना माने किसी तरह असन्दिग्ध रीति
'से घट नहीं सकता |
| जो कार्य स भिन्न दो कर उस का कारण बनता है वह निमित्तकारण
बहलाता है ] जैसे कपड़े का निमित्तदारण पुतलीघर ।
है जो स्व है। कार्येदप में परिणत होता द वह उस कार्य का उपादान-
कारण कहलाता दे ] जैसे कपड़े का उपादानकारणय আল)
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