केसर - क्यारी | Kesar Kayari
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
157
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)केसरक्यारी ` दोहै
विद्रोही शक्तिसिह चुपचाप सोचता हुआ अपने घोड़े पर
चढ़ा चल्ला जा रहा था। मांग में शव कटे पड़े थे--कहीं भुजाएं
शरीर से अलग पड़ी थीं, कहीं घड़ कटा हुआ था, कहीं खून से
लक्वपथ सस्तक भूमि पर गिरा हुआ था । कैसा परिवर्तन है! दो
घड़ियों में हँसते बोलते और लड़ते हुए ओ वित्त पुतले कर चले
गये १ ऐसे निरीह जीवन पर इतना गवं ! = -
शक्तिसिंह की आंखें ग्लानि से छलछला पढ़ीं--
ये सब भी राजपूत थे। मेरी ही जाति के खूंन थे ! हाथ रे
. मन | तेरा प्रतिशोध पूरा हुआ? नहीं, यह प्रतिशोध नदीं था, षम्
शक्त! यह तेरे चिर-कलंक ॐ {लष पेशाचिक आयोजन था । तू
সুজা? पागल | तू प्रताप से बदला लेना चाहता था--उस प्रताप
से ज्ञो अपनी स्वर्गादपि गसेयसीः जननी ` जन्म-भूमि - की मर्यादा.
बचाने चला था ? वह् जन्मभूमि जिसके शन्न-नल से तेरी नख
भी एूली-कली है ! अब सी माँ की मर्यादा का ध्यान कर ।?
. सहसा धांय-धांय गोलियों का शब्द हुआ | चॉककर शक्ति-
सिह ने देखा- दोनों सुगल-सरदार प्रताप दा पीछा कर रहे थे।
. महाराणा का घोड़ा अस्त-व्यस्त होकर भूमता हुआ गिर रहा है।
अब भी समय है। शक्तिसिंह के हृदय में भाई की ममता उमड़ पड़ी |
एक आवाज़ हुई--रुको | (রা 8 हा) था
_ दूसरे क्षण शक्तिसिद्द की बन्दूक छूटी, पत्रक मारते दोनों `
युगल सस्दार जहाँ-के तहां ढेर हो गये। महाराणा ने ऋोध से
आँख चढ़ाकर देखा, वे आँखें पूछ रही थीं--क्या मेरे प्राण पाकर
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