केसर - क्यारी | Kesar Kayari

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Kesar Kayari by प्रो. संत सिंह - Pro. Sant Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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केसरक्यारी ` दोहै विद्रोही शक्तिसिह चुपचाप सोचता हुआ अपने घोड़े पर चढ़ा चल्ला जा रहा था। मांग में शव कटे पड़े थे--कहीं भुजाएं शरीर से अलग पड़ी थीं, कहीं घड़ कटा हुआ था, कहीं खून से लक्वपथ सस्तक भूमि पर गिरा हुआ था । कैसा परिवर्तन है! दो घड़ियों में हँसते बोलते और लड़ते हुए ओ वित्त पुतले कर चले गये १ ऐसे निरीह जीवन पर इतना गवं ! = - शक्तिसिंह की आंखें ग्लानि से छलछला पढ़ीं-- ये सब भी राजपूत थे। मेरी ही जाति के खूंन थे ! हाथ रे . मन | तेरा प्रतिशोध पूरा हुआ? नहीं, यह प्रतिशोध नदीं था, षम्‌ शक्त! यह तेरे चिर-कलंक ॐ {लष पेशाचिक आयोजन था । तू সুজা? पागल | तू प्रताप से बदला लेना चाहता था--उस प्रताप से ज्ञो अपनी स्वर्गादपि गसेयसीः जननी ` जन्म-भूमि - की मर्यादा. बचाने चला था ? वह्‌ जन्मभूमि जिसके शन्न-नल से तेरी नख भी एूली-कली है ! अब सी माँ की मर्यादा का ध्यान कर ।? . सहसा धांय-धांय गोलियों का शब्द हुआ | चॉककर शक्ति- सिह ने देखा- दोनों सुगल-सरदार प्रताप दा पीछा कर रहे थे। . महाराणा का घोड़ा अस्त-व्यस्त होकर भूमता हुआ गिर रहा है। अब भी समय है। शक्तिसिंह के हृदय में भाई की ममता उमड़ पड़ी | एक आवाज़ हुई--रुको | (রা 8 हा) था _ दूसरे क्षण शक्तिसिद्द की बन्दूक छूटी, पत्रक मारते दोनों ` युगल सस्दार जहाँ-के तहां ढेर हो गये। महाराणा ने ऋोध से आँख चढ़ाकर देखा, वे आँखें पूछ रही थीं--क्या मेरे प्राण पाकर 1&




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