डॉ धर्मवीर भारती और उनकी कनुप्रिया | Dr. Dharmveer Bharti Aur Unki Kanupriyaa

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Book Image : डॉ धर्मवीर भारती और उनकी कनुप्रिया  - Dr. Dharmveer Bharti Aur Unki Kanupriyaa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५ डॉ० धर्मवौर भारती झौर उनकी कनुप्रिया भंजरी-परिणय' का दूसरा खण्ड राधा के चरम साक्षात्कार के क्षणों-- परम मिलन की श्रनुभूतियों से सम्बन्धित है। इस प्रकृति-बोला का कृष्ण के साथ मंजरी-परिणय होता है। “'मंजरी-परिणय' का पहला गीत आख्रबौर का गीत है। इसमें कृष्ण की जन्म-जन्मान्तर की रहस्यमयी लीला की एकांत- संगिनी राधा प्रपने प्रिय कनुको बताती है कि भय, संशय, गोपन, उदासी ग्रादि भाव मुझे चरम साक्षात्तार--“चरम सुख के क्षणों में भी श्रभिभूत कर लेते हैं भर मैं कितना चाहकर भी तुम्हारे पास ठीक उसी समय नहीं भरा पाती जब आम्र-मंजरियों के तीचे शभ्रपनी बांसुरी में मेरा नाम भरकर तुम मुझे बुलाते हो ।” राधा भ्रपनी विवशता जताती है। उसका प्रिय कन्‌ उसकी. प्रतीक्षा में सांभ को देर तक बाँसुरी में उसे टेरता रहता है, पर राधा उस दिन नहीं पहुंच पाती । राघा की लज्जा, संकोच, मोह, ब्रीड़ा, भय, संहाय भ्रादि संचारी भाव-वृत्तियों का बहुत सुन्दर प्रकाशन इस गीत में हुआ है । | . मंजरी-परिणय' का दूसरा गीत 'झाम़बोर का अर्थ शीर्षक है। कृष्ण प्रपती प्रिया की क्वारी उजली मांग को आ्राम्नबौर से भरना चाहते हैं। राधा उसका ठीक-ठीक प्र नहीं समझ पाती । वह प्रपते कनुप्रिय से श्रनृरोध करती है कि वंह उसकी नासमझी पर नाराज़ न हो । राधा न जाने कृष्ण के कितने संकेतों को समभती भाई है : “कितनी बार कृष्ण ने जब भ्रद्धोन्‍्मीलित कमल भेजा तो राधा त्रंत सम गई कि उसके प्रिय ने उसे संभा बिरियां बुलाया है।” इसी प्रकार कृष्ण के किंतने ही संकेतों को राधा समभती रही है। यदि इस बार प्राम्रवबौर का संकेत नहीं समझ पाई तो क्‍या ! राधा का प्रंग-प्रंग-सौन्दर्य कृष्ण के लिए साधन मात्र है राघा को पाने का और चरम-साक्षात्कार के क्षणों - में राधा को अनुभव होता है, जसे वह्‌ जिस्म के बोभ से मुक्त है--एक सुगंध- मात्र है। कृष्ण राधा को क्‍्वांरी उजली मांग को आम्रबौर से भर देते हैं ताकि भरकर भी वहं सदा ताज्ञी, कवारी भ्रौर उजली बनी रहे । रधा कहती है.फि मैं तुम्हारे इस प्रभिप्राय को ठीक-ठीक नहीं समझ पायी । भला सारे संसार से पृथक्‌ पद्धति का जो कृष्ण का प्यार है, उसकी भाषा सम पाना क्या इतना सरल है 7? फिर राधातो वही कृष्णं की बावरी है जो श्रपनी तन्मयता में श्वी हयाम ले लो | श्याम ले लो ![” पुकरती हुई हाट^बाट में, नगर-डमर में ग्रपनी हंसी कराती घूमती है! “




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