दिगम्बर ब्रह्मचारी सुन्दरलाल जी लिखित कल्पित कथा समीक्षा का प्रत्युत्तर | Digambar Brahmchari Sundarlal Ji Likhit Kalpit Katha Samiksha Ka Pratyuttar

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Digambar Brahmchari Sundarlal Ji Likhit Kalpit Katha Samiksha Ka Pratyuttar by चान्दमल जैन - Chandamal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(ई) में कभी ऐसा हुआ सह्दी । मातार्भा के रत के साथ बिना শীত फ्रे मिले सन्दानोत्पत्ति होती दी कभ है! परन्तु यदि इम भाप ही की बाव ऊपर के कभ्रमानुसार सच मान छें, तो इससे ता यद्दी सिद्ध हुआ, कि दीयंकर्रो की मादाएँ पर पुरुष-गामरिमी रददी होंगी, भौर भन्य पुरुषों के बोर्य दी परे तीमंकरों को जम धन्दोंनि दिया रोगा । वे आप हर के इस मठ छे कमा यह सिद्ध नही हुआ, कि दिगम्बर मत में तीथेकर, जारण और भणं -संकर होते हैं । “सस्य-परीक्षा” फे प्रृष्ट ३० पर, तीअंकरों के पिया्भों के शारीरो से षीं का निकलना भ्यामसर्सि सी खुसे भाम स्वीकार कर रह हे । यही नहीं, व द्वेनि उस बोय का इत्तम घातु कइ कर के सी माना है। पस्प, म्यामतर्सिन्‍् जी | कग्रा लड़ सगत्‌ की सारी जता भाप दी की बुद्धि के पक्ष में पढ़ी हे ; लो तीबंकरों के पिताओं के मृत्र तो नहीं बरन्‌ उनकी अननेद्रियों से बीये ही লিক্ষললা মানত हैं | बीये के इन मूल्यबान ऋटरों का, जिस में हे प्रस्येक छथरा, खून की साठ-साठ बहों फे समान शक्तिमान होता है, स्यामसर्सिद जी शेर विद्धाम (९) तीथकरों रू पिताभों के शरीरों से पेशाप के मिस वीर निकृष्नना बताते हं। परन्तु ই यद वात प्रकृति के लङ्क टी विपटीत हे । प्राणिशास्त के आज के मिप्पव भौर प्रथीण पंडित भी इस बात को मानने के ज्िये बवाह লী हैं, फिर न्यामतमिन जो मे दीघेइरों के बाए को पट्‌ नियाम कते भगा दी, नही द्वाम पहता। মি অঙ্




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