ज्ञाता - धर्म - कथा का हिन्दी अनुवाद | Gyata Dharm Katha Ka Hindi Anuvad
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
200
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्री शाताखू उम्
विचार में पड गये | उनकी समझ में नहीं आता था कि
यह समस्या कैसे हल की जाय *
इसी समय महाराज के स्वनाम धन्य पुत्र अभयकुमार
ने राजसभा में प्रवेश फिया। ये महाराज के चरण म्पण कर
एक ओर खडे हो गये । अमयऊुमार ने देखा--जगे मे
पिताजी के समीप आता था तो वे मुझे दुलातते थे, समीप
परिरल्लति ये । प्रज क्या ऊरणद मिवे यभते योते
तक नहीं ! अभयकुमार का पिता के प्रति अगाध भक्षिभाय
था। यह माता-पिता के अमीम उपकार फो भलीभाति
समभझता था और उनझी आज्ञा का पालन फरने ऊे लिए प्रा-
खाकी भी ममता न ररता था। यह समझता था-जिन्होने मुझे
जीयन देकर मरा पालन-पोपण फ़िया 6,जिनऊे अप्रतिम स्नेह
से पिप गाद मं करडा कर यडा हुमा ह, उन जिए जीवन
उस्मगे कर ठेना क्या वदी वत्ति द ? यतष्प यभयङ्मार
ने सोचा, अपश्य आज महाराज फ़िसी गहरे पिचार में हये
रट ६1 उसने हाय जोडफर नम्रतापूर्वफ पूछा-- पिताजी,
आज फ़िस गिचार मे भग्न हो रह हैँ? अतिदिन जन मे
आपकी सेवा में उपस्थित होता था तो आप प्यार से पास
में तिठाते थे । आज म कभी का यापे समीप सडा हं ।
यापने चरने कौ मी श्रा प्रदान् नदीरीच्चरन मेरी
ओर दृष्टि ही डाली । सयक के रहते आपको चिन्ता क्यों ? ५
ग्द ]
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