ज्ञाता - धर्म - कथा का हिन्दी अनुवाद | Gyata Dharm Katha Ka Hindi Anuvad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्री शाताखू उम्‌ विचार में पड गये | उनकी समझ में नहीं आता था कि यह समस्या कैसे हल की जाय * इसी समय महाराज के स्वनाम धन्य पुत्र अभयकुमार ने राजसभा में प्रवेश फिया। ये महाराज के चरण म्पण कर एक ओर खडे हो गये । अमयऊुमार ने देखा--जगे मे पिताजी के समीप आता था तो वे मुझे दुलातते थे, समीप परिरल्लति ये । प्रज क्या ऊरणद मिवे यभते योते तक नहीं ! अभयकुमार का पिता के प्रति अगाध भक्षिभाय था। यह माता-पिता के अमीम उपकार फो भलीभाति समभझता था और उनझी आज्ञा का पालन फरने ऊे लिए प्रा- खाकी भी ममता न ररता था। यह समझता था-जिन्होने मुझे जीयन देकर मरा पालन-पोपण फ़िया 6,जिनऊे अप्रतिम स्नेह से पिप गाद मं करडा कर यडा हुमा ह, उन जिए जीवन उस्मगे कर ठेना क्या वदी वत्ति द ? यतष्प यभयङ्मार ने सोचा, अपश्य आज महाराज फ़िसी गहरे पिचार में हये रट ६1 उसने हाय जोडफर नम्रतापूर्वफ पूछा-- पिताजी, आज फ़िस गिचार मे भग्न हो रह हैँ? अतिदिन जन मे आपकी सेवा में उपस्थित होता था तो आप प्यार से पास में तिठाते थे । आज म कभी का यापे समीप सडा हं । यापने चरने कौ मी श्रा प्रदान्‌ नदीरीच्चरन मेरी ओर दृष्टि ही डाली । सयक के रहते आपको चिन्ता क्‍यों ? ५ ग्द ]




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