श्री ज्ञान थोकड़ा संग्रह भाग -4 | Shri Gyan Thokda Sangrah Bhag-4

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Shri Gyan Thokda Sangrah Bhag-4 by धर्मचंदजी सेठिया - Dharmchand Sethiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ग] सयुं पांचो पद्‌ समरता, मिभ्या तिमिर्‌ पुलाय ५६॥ शुद्ध उपदेशुक शुद्ध गुरु, सेव्यां उपजे ज्ञान ॥ पत्थरकी प्रतिमा करे, गुरु कारीगर जान ॥ ७ ॥ ज्यूं साधु संगति थकी, शुद्धरे आतम ज्योत ॥ अनुभव दीपक हाथमे, निज घर होव उद्योत ॥ ८ ॥ भारी करमी जोव को, धर्मं वचन न सुहाय ॥ ज्यं ज्वर व्यापित देहे, के अरुची अन्नकी धाय ॥६॥ तिम मिष्या ज्वर जोर से, न हले अनुभव ज्ञान ॥ विपय कपाय मिथ्यात थी, । होय सुमत की हान ॥ १० ॥




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