औपसर्गिक सन्निपात [प्लेग] | Aupasargik Sannipat [Plague]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १६ ) जवि श्रायु्ेदीय सिद्धान्तायुसार नन योगौ फा नाम नियत फरने का नियम है। और ऐसा इओा भी है तो क्‍यों आजकल की बिचार क्षमा येधमडली इस दुष्ट रोग के सम्पूर्ण लक्षणावि शार्रो में न मिलने पर इसका फाल्पित नाम नहीँ रखती और इसके उपायों की योजना नष्टं करती 1 बड़ा झाप्यय्थ हैं कि विदेशीय चिकित्सक तौ अपने घुद्धि यल से नवीन २ रोगौ का श्राधस्ये जनक परिशान फर संसार फो विस्मित कर, झऔर दम हाथ पर हाथ रखे हुए अपनी युद्धि फो कुछ भी परिश्रम न दूं। - श्राज भारतवर्ष मे फिर से उन्नतिकारक मद्दोत्साद्द पेदा हुआ है परन्तु हमारा घेंच समुदाय अब भी यूड़ निद्वा में सोरदा है। यवि इस समय भारतवर्पीय बैद्य एक यड़ी सभा फरफे इस रोग का निम्धय फर शीघ्र गुणकारक उपचारादि बनाकर अपनी धुद्धि फा परिचय देते तो ससार भरफे डाफ्टर लोग एक मुझ से शाप की शुणायली गाते । खैर অহ विचार फरना शेप रहा फि इस रोग का यया नाम नियत फरे | ~ जब चरक मदर्पि स्वीकार करते ह किदेश् मे श्रधम्मं फे बढ़ने धर चायु जल देश फाल इन चार्यो मे पिकार पैदा दो फर कोई ऐसा सेग उठणड़ा होता है जिससे देश फे देश न्ट दो जाते दै ततौ इतनी बाते यहुत अच्छी तरद मिलने पर स रोग को जनपदोद्सक श्रौर औपसर्गिक कहने में कोई सकोच न करगा | परन्तु मदर्पि ने जनप- बोखसनीय अध्याय में कोई एफ रोग का नियम नहीं किया कि इन लक्षणों पाला रोग पेदा होकर जनविध्यंस करता है। फेयल यह कदा है फि बायु, जल, देश, काल में अन्तर पड़ जाने से रोग उत्पन्न दो जनपदोद्धंस फरता दे। इससे मालूम पड़ता है कि समंयाघुसार अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो सकते हूँ जिनके लक्तण अनिश्वित हैँ। प्लेग रोग में रोगी फो तीम्र ज्वर आता है और रक्त में पिष फा समावेश होने से तीनो दोष कुपित दोते है। प्लेग घाले की अपस्था सन्निपात से अधिक मिलती है श्रौर सन्निपात फे सत्तण भी बहुत भिलते हे । खन्निपात के समान ही सतत्यु होती है इससे मुरादावाद्‌ निधासी घिद्वान बैच दुर्गोदत्त जी पथ का निश्चय किया “भौपसर्गिक खन्निपात प्लेग को कहना यहुत समीच्रीन है। इस ही पफार जनविध्चसक सन्निपात” माम भी युक्ति सग॒त भतीत होता है।




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