श्री भगवती कथा खंड २६ | Shri Bhagwati katha Khand - 29 ]

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Shri Bhagwati katha Khand - 29 ] by श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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({ १६६) के लिये क्‍या सूर्य जल की चोरी नहीं करता है। सेत्नी का বিনা करना अत्यन्त फठिन है। प्रथम उपकार करके तय मिच्र से आशा रखे। राम को अपनी पत्नी प्राप्त करनी थी,। वालि को न मारते तो श्षुप्रीय का पक ही पत्नी मिलती। एक पत्नी की हुँढ़चाई में सुम्रोच को एक दही पत्नी देते तो राम और सुमरीय में अन्तर ही क्या रहता। राम ने वालि को मारकर सुम्रीव को दो पत्नियों दी तब उनसे .अपनी पत्नी ढु दवाई, यहाँ राम ने मैत्री निर्वाह फा श्यादशं उपस्थित किया । भित्र का दुराना उपकार करदे, सोभी प्रथम, तव उससे कुछ आशा रखे | सुप्रीय दो पत्नियों फी पाकर राम के काज को भूल गया। अब राम निरन्तर रोते रहते थे। कभी सीदा फे लिये गते कभी: अवधकी याद आती । एक दिन वे अपने भाई लक्ष्मण से घोले-- ५सुमिवानन्दूनवधेन ! लकमण ! कितनी सरदी पड़ गही दै । हाय ठिद्वर रहे हैं। अबध में ता इससे भी अधिक सरदी पड़ती. होगी। यहाँ बन ,में मेरी पत्नी दर गयीं, 'अऊेले रददते रहते मुझे यजाड़े के दिन काटने को दौड़ रहे हैं, मुझे वध की याद पा रही है ।” है लक्ष्मण ने आज़ खुलकर कद्दा--“महाराज ! बड़ों की बात बड़े द्वी जानें । आज आप ज्ञाड़े के कारण दुःख प्रकद कर रहे हैं, पश्यात्ताप कर रहे हैं। मैंने आपसे तभी-कहा था आप राज्य ले छोड़ें । मैं पिठा को पकट्टकर बन्द कर देखा आप सिदासन पर অত আবি। ये सब इतने कलेश क्‍यों सहने पढ़ते, तत्र तो आप घड़े पिठृभक्त चन गये, बड़ा त्याग दिखाया। चर आप पश्चात्ताप कर হই ই» , 8, अत्यन्त प्यार से श्रीयम लक्ष्मण, से बोले--अरे, लघ्मण ! तू इतने दिन मेरे साथ रहकर भी मेरे भाव को नहीं सुगम




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