जैनों का इतिहास | Jainou Ka Itihash
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
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असीम कुमार रॉय - Aseem Kumar Roy
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सुधीन्द्र गेमावत - Sudhindra Gemawat
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)5
इस उपनिषद् में कुछ संवाद विदेह में (वर्तमान मिथिला) में हुए थे--जो कि मगध से
अधिक दूर नहीं है--जहाँ ये दोनों महान् गुरु अपना धर्म प्रचार कर रहे थे। इस प्रकार
स्थान ओर समय में--उपनिषदिक एवं बौद्ध-जैन-युग-दोनों एक दूसरे के ज्यादा दूर नहीं
है। फिर भी ऐसा लगता है कि दोनों की दुनिया अलग-अलग हो। उदाहरणार्थ हम
बृहदाकारण्य उपनिषद् के उस प्रसंग को लें जिसमें विदेह के राजा जनक याज्ववलक्य से
प्रश्न पूछते हैं :
जनक विदेह : हे याज्ञवलक्य जब सूर्य अस्त हो जाय, चन्द्रमा डूब जाय, अग्नि समाप्त हो
जाय और ध्वनि शांत हो जाय, तब मनुष्य के लिए कौनसी ज्योति बच
जाती है ?
याज्ञवलकष्य: आत्मा ही वास्तव मेँ प्रकांश है, क्योकि केवल आत्मा मे प्रकाश होने से
ही मनुष्य बैठता है, चलता रै, अपना कार्य करता है ओर लौटता है।
अनक विदेह: वो आत्मा कौन है ?
याज्ञवलक्य: वो जो हदय मेँ अवस्थित है, जो प्राणों (संज्ञाओं) द्वारा आवृत्त है, जो
ज्योतिर्मय है, ज्ञानवान है।
स्पष्ट है कि ये प्रश्न ओर उत्तर पारलौकिक है उनका किसी मानवीय
क्रियाकलापों से सम्बन्ध नहीं है।
इसकी तुलना में हम उन प्रश्नों पर विचार करें जो मगध के सप्राट अजातशत्रु
ने उन छः अवैदिक संतों से पूछे थे जो उसके साम्राज्य में धर्म प्रचार कर रहे थे। उनमें
से एक स्वयं महावीर नाय पुत्त भी थे।
जो प्रश्न मगध सप्राट अजातशत्रु ने पूछा वह इस प्रकार था:
“दुनिया के विभिन धंधो में होने वाले लाभ की जानकारी सभी को है परन्तु
क्या तपस्या से होने वाले लाभों को बतलाना संभव है ?” “सन्दिधिक्कम सामन
फलम”। सभी छः गुरुओं ने अलग-अलग उत्तर दिये। इस क्षण उन उत्तरों से हमारा कोई
सरोकार नहीं हे परन्तु जो बात ध्यान देने की है वह यह है कि यह प्रश्न बिल्कुल
सांसारिक है और एक राजा के लिए बहुत ही स्वाभाविक भी, परन्तु राजा जनक ने जो
प्रश्न पूछे थे वे बिल्कुल अन्य धरातल के थे।
इस प्रकार हम एकं प्रमेय (५०८७). मान लेते है कि हम दो भिन
जातियों के नेमे बात कर रहे हैं--एक अवैदिक और दूसरी उत्तर वैदिक--जिनके
दृष्टिकोण एक दूसरे से बिल्कुल भिन थे। बौद्ध शाखों के अनुसार उस समय उत्तर भारत
में 16 जातियों रहती थीं। जहाँ वे रहती थीं उन स्थानों के नाम भी जातियों के नामों
के अनुसार पड़ गये थे । उन जातियों म कुर, पांचाल, मच्छ, सौरसेन-उत्तर वैदिक एवं
ब्राह्मण धर्म के मानने वाले थे। अपने धर्म के बारे में बुद्ध ने और जिस पुराने धर्म में
महावीर ने सुधार किग्रे--और जिन लोगों को उपदेश दिये थे वे मागध, अंग, कासी,
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