अध्यात्मज्ञान की आवश्यकता | Aadhyatmgyan Ki Aavashyakata
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
158
श्रेणी :
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गोपीचंद धाड़ीवाल - Gopichand Dhadiwal
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चाँदमल सीपाणी-Chaandmal Siipani
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प
अ्ध्यात्मज्ञान में समायेध होता है, मनोसृष्ति का अ्रध्यात्म में
समावेध होता है। इस काल में गुप्ति की साधना के लिए
शास्त्रों में कहा है । मनोगृष्ति की साधनारूप अ्रध्यात्म चारित
इस काल में किसी सोमा तक है; इसकी जो बकबाद करते हैं
वें उत्मृत्त भाषण करते हैँ। इस काल में सातवें गुणस्थानफ
तक पहुँचा जा सकता है। आत्मा के अध्यवसाय की शुद्धि ही
आंतरिक प्रध्यात्मचारित्र है। अध्यात्मज्ञान का अस्पास कर
अध्यात्मचारित्र प्राप्त फरना चाहिए ।
नवतत््व का--सात नये से अभ्यास करने से श्रध्यात्मज्ञान
प्राप्प किया जा सकता है । नवतर्व के ज्ञान को ग्रध्यात्मज्ञान -
ही कहा जाता है। उपमसितिभव-प्रपंत्र प्रन््थ में श्रध्यात्मज्ञान -
की मस्ती ही देसने में आती है । उपमितिभव प्रपंच ग्रन्थ के .
लेखक इस पंचम काल में ही हुए हैं। श्रीमद यशोविजयजी
उपाध्याय 'निदचय दृष्टि चित्त धरीजे, पाले जे व्यवहार इस
बचन से अध्यात्मज्ञान रूप नि६्चय दृष्टि धारण करने की इस
काल में मनुष्यों को शिक्षा देते हैं, जिससे इस काल में चोथे
गुणस्थानक से अब्यात्मगान की साधना को साधा जा सकता
है एसा निश्चय होता है ।
जैन दवेताम्वर वर्ग में अध्यात्मज्ञान को विशेष रुप से
प्रकाश में लाने वाले श्रीमद् यशोविजयजो उपाध्याय हैं. 1
” अध्यात्मोपनिपत्, अध्यात्म परीक्षा, भ्रादि ग्रन्थों के प्रगेत्ताको
सम्पूर्ण ब्वेताम्वर जैन समाज पूज्य दृष्टि से देखता है । उन्होंने
जिस रोति से व्यवहार क्रिया कि पुष्टि की है उसी के अनुसार
अध्यात्मज्ञान की भी पुष्टि की है। शौर इस काल में भ्रध्यात्म-
ज्ञान की गुणस्वानक को अपेक्षा से प्राप्ति हो सकती है इसे स्वी-
कार किया है; जिससे श्रव अध्यात्मज्ञान को निश्चित मत कहकर
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