श्री बाबू देवकुमार - स्मृति - अंक जैन - सिद्धान्त - भास्कर भाग -18 | Shri Babu Dev Kumar Samriti Aank Jain Sidhant Bhasakar Bhag 18
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
47 MB
कुल पष्ठ :
537
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)किश्ण ৭] बाबू देवकुमार जी की जीवनी
चहुँदिक हाहाकार है, शोक महा संताप।
बालबृद्ध बनिता बधू, सबही करत प्रल्ञाप ॥
»২ © | ये
धयं २ ! ये भ्रात गण, यही जगत की रीत।
काल बलीके सामने, कछुनहिं नोत अनीत ॥
माया जगकी अमित हे, यह संसार असार।
एक दिना सब जायेंगे, यही जगत व्यवहार ॥
विभव सदा नहि रहि सके, तथा शरीर अनित्त ।
काल सदा सिर पर खड़ी, घर्मह दीज चित्त।
मृत्यु जबलों दूर हे, जब लों देह निरोग।
धमपन्थ साधन करो, वृथा जगतकां भोग।।
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