श्री बाबू देवकुमार - स्मृति - अंक जैन - सिद्धान्त - भास्कर भाग -18 | Shri Babu Dev Kumar Samriti Aank Jain Sidhant Bhasakar Bhag 18

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Shri Babu Dev Kumar Samriti Aank Jain Sidhant Bhasakar Bhag 18  by कामताप्रसाद जैन - Kamtaprasad Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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किश्ण ৭] बाबू देवकुमार जी की जीवनी चहुँदिक हाहाकार है, शोक महा संताप। बालबृद्ध बनिता बधू, सबही करत प्रल्ञाप ॥ »২ © | ये धयं २ ! ये भ्रात गण, यही जगत की रीत। काल बलीके सामने, कछुनहिं नोत अनीत ॥ माया जगकी अमित हे, यह संसार असार। एक दिना सब जायेंगे, यही जगत व्यवहार ॥ विभव सदा नहि रहि सके, तथा शरीर अनित्त । काल सदा सिर पर खड़ी, घर्मह दीज चित्त। मृत्यु जबलों दूर हे, जब लों देह निरोग। धमपन्थ साधन करो, वृथा जगतकां भोग।।




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