बौद्ध - दर्शन | Baudhda Darshana
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.41 MB
कुल पष्ठ :
188
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जीवनी |] गोतम बुद्ध दे
वर्षों तक योग शभ्रौर श्रनशनकी भीषण तपस्या की । इस तपस्याके बारे-
में वह खुद कहते हे
मेरा दारीर (दुर्बलता )की चरमसीमा तक पहुँच गया था । जैसे
. .झासीतिक (श्रस्सी सालवाले )की गाँठें, . . .वेसे ही मेरे भ्रंग
प्रत्यंग हो गए थे । , . . . जैसे ऊँटका पैर वैसे ही मेरा कल्हा हो गया था ।
जैसे . , . . मुझ्ोंकी (ऊँची-नीची) पाँती वैसे ही पीठके काँटे हो गये
थे । जैसे बालकी पुरानी कड़ियाँ टेढ़ी-मेढ़ी होती हैं, वैसी ही मेरी पँसु-
लियाँ हो गई थीं । ....जैसे गहरे कएंमें तारा, वैसे ही मेरी झाँखें
दिखाई देती थीं ।...... जैसे कच्ची तोड़ी कड़वी लौकी हवा-धूपसे
चुचक जाती है, मुर्भा जाती हे, बैसे ही मेरे शिरकी खाल चुचक मुर्का
गई थी ।. . . . उस भझ्रनशनसे मेरे पीठके काँटे और पैरकी खाल बिलक्ल
सट गई थी । . . . . यदि में पाखाना या पेशात्र करनेके लिए (उठता) तो
वहीं भहराकर गिर पड़ता । जब में कायाकों सहराते हुए, हाथसे गात्रको
मसलता, तो . , . . कायासे सड़ी जडवाले रोमु भड़ पड़ते ।, . . मनुष्य. . .
कहते--'श्रमण गौतम काला है कोई . . . .कहते--'. . , .काला नहीं
स्याम'। . . . .कोई . , . .कहते--'. . . .मंगुरव्ण हे । मेरा वेसा परिशुद्ध,
गोरा (स््ल्परि-य्रवदात) चमड़का रंग नष्ट हो गया था ।
', , , ,लकिन, . , ,मने इस (तपस्था) . . . .से उस चरम...
दर्शन . . . .को न पाया । (तब विचार हुमा) बोधि (स््नज्ञान) के लिए
कया कोई दूसरा मार्ग हे ? . . . .तब मुझे हुझ्ा--'. . . .मेंने पिता
(न्न्शुद्धोदन) शाक्यके खेतपर जामुनकी ठंडी छायाके नीचे बैठ. . . .
प्रथम ध्यानकों प्राप्त हो विहार किया था, शायद वह माग॑ बोधिका
हो।....(किन्तु) इस प्रकारकी ्रत्यन्त कद पतली कायासे वह
(ध्यान-) सुख मिलना सुकर नहीं है।....फिर में स्थल ग्राहार--
दाल-भात--ग्रहण करने लगा । . . . .उस समय मेर पास पाँच भिक्षु
' बही, पृ० ३४८
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