श्रीमाताजी के विषय में टिप्पणियों और पत्रों से संकलित भाग- 20 | Shrimatajike Vishay Men Tippaniyon Aur Patron Se Sankalit Bhag - 20

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीमाताजी और उनके देहधारणका प्रयोजन 9 उ०- मैं नही मानता कि कक्ष को या किसी औरको पहली ही दृष्टिमें श्रीमाता- जीके पूर्ण दिव्यत्वके दर्शन हुए होंगे। वह दर्शन केवल तभी हो सकता है जब कि किसीने पहलेसे ही गुह्म लोकोंका सृक्ष्म दर्शन प्राप्ति करनेकी शक्ति विकसित कर रखी हो। अधिक महत्त्वकी वात यह है कि इस बातका स्पष्ट दर्शन या घनिष्ठ आन्तरिक अनुभव या प्रत्यक्ष बोध हो कि “यही वे हैं।” मैं समझता हैँ कि इन मामलोंमें तुम्हारा कुकाव बहुत अधिक काल्पनिक और काव्यमय होनेकी ओर है ओर आध्यात्मिके रूपसे यथार्थवादी होनेकी ओर वहूत कम। वहुतसे लोगो्मे, जव वे साधना आरम्भ करते ই तव, गुह्य देर्दनिकी इस ग्रकारकी शक्ति सवसे पहले विकसित होती है भौर दूसरोमे यहु शक्ति स्वभावतः ही उपस्थित रहती है अथवा योगको किसी साधनाके विना ही कभी-कभी आती है। परन्तु जो लोग मुख्यतः बुद्धिम निवास करते हैँ उनमें (कुछ लोगोको छोड़कर) यह शक्ति साधारणतया स्वभावतः ही उपस्थित नही होती ओर उनमेंसे बहुतोंको उसे विकसित करनेमें वड़ी कठिनाई होती है। इस विपयमें मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ था। इस दर्शनशक्तिके बिना चीजोंको देखना एक प्रकारका जादू ही होगा। हम लोग यहां इस प्रकारके जादूका बहुत अधिक कारबार नहीं करते। २६-७-१९३५ श्रीमांके दिम्यत्वकी पहूचान कुछ लोग एकदम आरम्भ कर देते हैं और दूसरोको समय लगता है। 'क्षने पहली दृष्टिमें ही श्रीमाताजीको भगवतीके रूपमें पहचान लिया था ओर उसके बादसे वरावर ही वह प्रसन्न रहा है; दूसरे लोगोंकी, जो श्रीमाता- जीके भक्तोंमें ही शामिल हैं, इस बातका पता लगाने या इसे स्वीकार কিল वर्षों लग गये, पर वे सब उस स्थितिकों प्राप्त हुए। कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें अपनी साधनाके पहले पांच, छ., सात या अधिक बर्षोतिक कठिनाइयों और विद्रोहोंके सिवा और कुछ नहीं मिला, फिर भी अनन्‍्तमें चैत्य पुरुष जंग गया। समय लगनेकी वात गौण है; एकमात्र आवश्यक बात है वहां पहुँच जाना -- फिर चाहे जल्दी हो या देरमें, आसानीसे हो या कठिनाईके साथ। कं के मे प्र०- बहुत बार मैं देखता हूँ कि पुराने संस्कार उठ खड़े होते है




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