गृहभंग | Grihabhang
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
422
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about एस॰ एल॰ भैरप्पा - S. L. Bhairappa
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दोनों बेटों का व्यवहार देखकर, गंगम्मा क्रुद्ध हो गयी । रलाई के साथ आंखों में
आंसू छलक आये । “दूसरों के घरों में बच्चे अपनी मां से कितना डरते हैं ! लेकिन
इस रांड के बेटों को क्या रोग लगा है? मेरी ही किस्मत ऐसी है !_ कहकर रो
पड़ी । फिर उठी और सीधे रसोईघर में जाकर चिमटा चूल्हे में रख दिया। दोपहर
के तीन बज चके थे। चूल्हे में आग नहीं थी। नारियल की नट्टी आदि की आग
राख बनती जा रही थी। बेटा पंद्रह वर्ष का था और 'जैमिनी भारत पढ चुका
था, इसलिए जान गया कि मां चिमटा क्यों तपा रही है। एक ही सांस में छिनाल,
रांड, कुलटा कहकर वह घर से निकल भागा । गंगम्मा जानती थी कि अब उसे
पकड़ ना मुश्किल है। फिर भी वह हार मानने वाली नहीं थी । वह बंठी-बंढी
सोचने लगी कि इन हरामजादों को काबू मे कैसे किया जाय ! चिमटा बुभते अंगारों
में भी धीरे-धीरे गरम होता ही जा रहा था।
जब गंगम्मा ने इस घर में प्रवेश किया था, वह तेरह वर्ष की थी। पति की उम्र
थी पेतालीस । इनको पहली पत्नी से दो बच्चे हुए थे, कितु दोनों मर गये थे।
बाद मे उनकी मां भी चल बसी थी। पहली पत्नी, गंगम्मा के যান জানলা
की ही थी। इसीलिए गंगम्मा रामण्णाजी को ब्याह दी गयी थी। वे रामसंद्र
सहित तीन गांव के पटवारी थे। छह एकड़ का खेत, आठ एकड़ की बाड़ी, नारियल
के तीन सौ पेड़, काफी सोना-चांदी और पर्याप्त बतेन आदि होते हुए उन्हें कौन
लड़की न देता ! सारा गांव कहता था कि रामण्णाजी शुरू से ही साधु-पुरुष थे। वह
भी गाय-से, नन््हीं बछिया-से | लेकिन गंगम्मा बाघिन थी--ऐसा लोग कहा करते
थे, जब कभी यह वात गंगम्मा के कानों में पड़ती, तो वह कह उठती, “इन लोगों
के मुंह में अपने बायें पर की पुरानी चप्पल ठंस दूंगी ।” अगर उसके बेटे अक्लमंद
होते और कहना सुनते और तो उसे ऐसा करने से कोई भी रोक नहीं पाता, वह
लोगों के मुंह में जरूर चप्पल ठंस देती। लेकिन इस छिनाल के बच्चे नालायक
निकले। “इन्हें सबक सिखाना होगा। न सिखाऊं तो मैं जावगलछ॒छु की औरत
नहीं ! चिमट को चूल्हे में ही रहने दो और तपने दो । शाम को 'पिड' खाने जरूर
आयेंगे ही । तब उनके पेरों पर दागूंगी, जेसे बछड़ों को दागा जाता है। बछड़ों को
जब तक दागा न जाय, वे कहां मानते हैं ! इसीलिए तो दागते हैं न कि वे कहना
मानें, आज्ञा का पालन करें ! “--बड़बड़ाती हुई गंगम्मा ने चिमटे को अपने लाल
पललू से पकड़रक एक बार घुमाया-फिराया और फिर धीमी आंच में रख दिया।
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