सन्तो की महिमा | Santo Ki Mahima

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Santo Ki Mahima by गणेश नारायण खनना - Gnaesh Narayan Khanna

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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14 रहता है. एवं सुखी रहता है--उसका भय मिट जाता है, उप् को कामना मिट जाती है-इस लिये कहा गया है कि चाह मिटी चिन्तामिटी मनवा बे परवाह। जा को कुछ चाह नहीं सोही सच्चा शाह”॥ सन्‍्तों का कहना है कि परमात्मा की भक्ति से यानि नाम जप से जन्म जन्मानतरों के पाप कर्म फल भी यानि प्रारव्धियिक कर्मों के भावी कम फल भी गौण हो जाते हैं-- जैसे कहा है कि “सब कर फल हरि भक्ति सुहाई। सो बिनु सन्तन काटा पाई दूसारा संत जगत में श्रपने लिये नहीं जीते है, उन का जीवन परोपकार के लिये होता है--प्रर्थात लिखा है “परोपकार संता विभूतय:”-जैसे नदी का जल और वक्ष, श्रपने फलो का सेवन नहीं करते हैं, वरन परोपकारार्थ दूसरों की सेवा करते हैं ऐसे संत भी दूसरों की निःस्वार्थ सेवा करते हैं-संत तुलसीदास जी ने यह श्रनुभव करक कहा है कि “तुलसी या संसार में भर-मर पौन श्र गार । संत न होते जगत में डूब मरता संसार ॥ पुनः गोसाई जी कहते हैं कि “सन्त सह हि दुःख पर हित लागी। पर दुःख दतु श्रसन्त श्रभागी ॥ | অন্ন का स्वभाव होता है कि वे दीनों व श्रनाथों पर दया करते है राम चरित्र मानस में कहा हैं कि कोमल चित दीनन पर दाया। संत सहज स्वभाव खगराबा” ॥




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