पूर्वोदय | Purvodaya
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
288
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)$ २६
सर्वोदय की नोति
नये समाज के निर्माण की आज चाह है। इस चाह में यह तो आ
ही जाता है कि वह समाज बेहतर होगा | नया हो, इतना भर काफी नहीं
है] यो तो कभी पुराने से ऐसा जी ऊब जाता है कि कुछ भी नये पर
वह ललच उठता है, फिर चाहे पहले से वह.वदतर ही साबित हो | आंदोलनों
में पड़नेवालों में ऐसे लोग हो सकते हैं, जिनके पास मौजूदा समाज से
असन्तोप ज्यादा है, भावी समाज की कल्पना उतनी नहीं है | केवल
असन्तोष की यह प्रेरणा विधायक नहीं होती। वह बनाती कम है, विगाड़ती
हैं अधिक | “नया समाज” कहकर आज की हालत से श्रसन्तोप तो इम
जतलाते ही हैं; लेकिन उस असन्तोप के साथ (आगामी समाज जो हम
लाना चाहते हैं, उसका विचार भी होना जरूरी है । नहीं तो खाली
असन्तोप में हम बने को ही गिरायेंगे, उसकी जगह कु नया वना नहीं
पायेंगे | पुराना दा देने से नहीं, अभी से नया निर्माण -करने लगने से
नया समाज बनेगा ।
समाज पदार्थ की तरह की चीज नहीं है । वह वेलान नदी, जानदार
है | इसलिए पदार्थ को जिस गणित के विज्ञान के उसूलों से हम तोड़ते-
জীভ हैं, वे ज्यो-के-त्यों समाज की रचना में काम नहीं देते | समाज की
इकाई आदमी है और आदमी में मन है | इसलिए समाज की रचना का
विज्ञान कुछ दूसरे तरीके का होगा |! वह मानसिकता से जुड़ा दोगा
ओर उखकी नव-स्वना वादर के प्रहार से नहीं हो पायेगी 1 जेंसे लकड़ी
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