यजुर्वेदभाषाभाष्य [भाग-2] | Yajurved Bhasha Bhashy [Bhag-2]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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षपोडशो5ध्याय! ॥ १द भावार्थ:--सब मलुष्य सम्पूर्ण प्राणियों का उपकार विद्वानों का सद्ग समग्र शोमों भर विद्याओं को घारण करके सन्तुष्ट हों ॥ २६ ॥ नमः सेनाभ्य इत्यस्य इत्स ऋषिः । रुद्रा देवता: । श्ुरिगतिजगती छन्दः । निषादः स्वरः ॥ फिर उसी विषय को अगले भन्त्र में कहा है | = | रू / | १० ৬২ =| _ क = । नखः सेनाभ्यः सेलानिभ्यश्च वो नमो नमो रथिस्येऽख्रथेभ्यस्च वो नयो नमः लन्तभ्य॑ः संग्रहीतृभ्यश्च छो नमो नमो पदद्मभ्योऽ (०. 1 ২ 1 अभकेमभ्यश्च दो नमः ॥ २६ ॥। पदार्थ!--हे राज और प्रजा के पुरुषो ! जैते हस लोग ( सेनाभ्यः ) श्रो को वांधने हार सेनास्थ पुरुषों का ( नमः ) सत्कार करते ( च ) और ( वः ) त॒म ( सेनानिभ्यः ) सेना के नायक प्रधान पुरुषों को ( ससः ) अन्न देते हैं ( रथिभ्यः ) प्रशंसित रथों वाले पुरुषों का ( नमः ) सत्कार ( च ) और ( वः ) त॒म ( अरथेस्यः ) रथों से प्थक्‌ पेदल चलने वालों का ( नमः ) सत्कार करते हैं ( चत्तभ्यः ) क्षत्रिय की सत्री में शूद्र से उत्पन्न हुए वर्णसंकर के खतिये ( नमः ) अन्नादि पदार्थ देते (च ) और ( वः ) तुम ( संग्रहीतृभ्य: ) अच्छे प्रकार युद्ध की सामग्री को अहण करने हारों का ( नमः ) सत्कार करते दं ( महद्भ्यः ) विद्या और अवस्था से छद्ध पूजनीय महाशर्यों को ( नमः ) अच्छा पकाया हुआ अन्नादि पदार्थ देते (च ) ओर (वः) ठम ( अर्भक्रेभ्यः ) क्षुद्राशय शिक्षा के योग्य विद्यार्थियों का ( नमः ) निरन्तर सत्कार करते हैं चेसे तुम लोग भी दिया, किया करो ॥ २६ ॥ भावाथे ---राजपुरु्षों को चाहिये कि सब भहत्यों को सत्कार और शिक्षापुर्वक अद्वादि पदाथों से उन्नति देके धर्म से राज्य का पालन करें ॥ २६ ॥ नमस्तत्तभ्य इत्यस्य कृत्स ऋषिः । रुद्रा देवताः । निचुच्छक्करी छन्दः । धैवतः स्वरः ॥ विद्धान्‌ लोगों को किन का सत्कार करना चाहिये यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥ नयस्तन्लैभ्यो रथकरिम्यस्च चये नखो नमः कुख।टेभ्यः क मीरेभ्यश्च वो नम्तो नमों निषादेम्यः पुल्निष्टेम्घश्व वो नमो नमः श्वनिभ्यों सगयुभ्य॑श्च वो नम॑ः | २७ ॥ पदार्थः--दे मनुष्यो ! नैते राजा आदि हम लोग ( तक्तभ्यः ) पदार्थों को सूच्मक्रिया से बनाने हारे तुम को ( नमः ) अन्न देते ( च ) और ( रथकारेभ्यः ) बहुतले विसानादि यानों को बनाने हारे ( वः ) तुम लोगों का ( नमः ) परिश्रसादि का धन देके सत्कार करते हैं ( कुलालेभ्य: ) . अशंखित লহী के पातन्न बनाने वालों को ( नमः ) अन्नादि पदार्थ देते ( च ) और ( क्सौरेभ्यः ) खड्य, बन्दूक और तोप आदि शख्त्र बनाने वाले (व: ) तुम लोगों का ( नमः ) सत्कार करते हैं ( निपादेभ्यः ) चन श्रौर पर्वतादि मे रह कर दुष्ट जीवों को ताइना देने वाले तुम को ( नमः ) श्रन्नादि देते ( च )




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