अरबी काव्य - दर्शन | Arbi Kavya Darshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
186
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about बाबू महेशप्रसाद साधू - Babu Maheshprasad Sadhu
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ছু झरवी काव्य-दर्शन ।
अकाछके दिनोंमें भी जो कोइ आगमन्तुकोंको सुख पहुँचाता था,
वह विशेष रूपसे प्रशंसाका भागी होता था ।
(३) प्राचीन अरब जब कभी अपने सहायकोंको युद्ध
ठाननेकी सूचना देना चाहते थे और उनके एकत्र होनेके लिये
घोषणा करना चाहते थे, तब उस अवसर पर भी किसी ऊँची
जगह पर अग्नि प्रज्वलित किया करते थे। इसके अतिरिक्त
कई अन्य बातोंके चिहमस्वरूप भी अप्रि प्रज्वलित की
जाती थी | |
(४) अरब लड़ाईमें मर जाना अच्छा समझते थे ।
(५) तलवारके कुन्द हो जाने अथवा उसमें दन्दाने
आदि पढ़ जानेका अभिप्राय यह है कि अति घोर युद्ध हुआ ।
(६) बदला छेनेमें बड़ा गौरव समझा जाता था ।
(७) अरब छूटमार करके धन प्राप्त करना अच्छा सम-
झते थे। उनके खयालमें यह जीवनका एक अंग था | द्ुटमार
प्रायः अन्धेरी रात अथवा प्रातःकालके समय होती थी ।
(८) दोपहरके समय यात्रा करनेबाछा बड़ा साहसी
समझा जाता था ।
(९) किसीसे माँगनेके बदले दुःख भोगना, यहाँ तक कि
मर जाना भी बे अच्छा समझते थे ।
(१०) अरबके कवि अपनी अथवा अपने पू्बजों आदिकी
अशंसा करना बुरा नहीं समझते थे ।
(११) अरबीके “उम्प्र शब्द का अयथे है (माता, } शन्न
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