भक्त - नारी | Bhakt Naree

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Bhakt Naree by हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जे शबरी कर. न जाकर दाबरीकी मैंद़ैयाका पता पूछने छगे तो उन तपोबढके अभिमानी सुनियोंको बड़ा आश्चर्य हुआ । श्रीरामका अपने प्रति इतना अलुम्रह देखकर दाबरी उनकी अगवानीके छिये मनमें अनेक करती हुई सामने चढी ।- - भक्तमालमें कहा है-- आयू चले राम आई आयू लेन शबरीदू . चरण परन घाई वे मिलनकों घाये हैं । यिरि सी मुजद्ण्ड सों उठाय लीन्हीं फिरिकै गिरी सो पुनि मुज॒पसराये हैं ॥ प्रेम-दश्ा कहीं नहीं जात रघुराज दोऊ तन सन वचनकी साषि बिसराये हैं । सल्े ्राप मिले मोहिं सली मिली तौँ हूँ यह कहन दुदूनके सकारे सरि आये हैँ ॥ तनुकों सैंभारि करि ताकों मिली बार बार चारिज-विलोचनानि.. प्रेमवारि ढारिके । करको पकरि ताप ताहिकी कुटीकों चले राम मुनिमण्डल बिसारिके ॥ पुनि पुनि पूछे श्रमु तेरी कुटि केती दूरि जासें हाँ बसौंगो वारिके ।




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