ऋग्वेदभाष्यं | Rigwedabhasayam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
95 MB
कुल पष्ठ :
1028
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द ६ लाभेन कोन णिनत जनित वि ०) ११५५०४०१
` ऋष्थेदः सं० ९१। अ० ११ । सू० ६२ ॥ ११३९
শালী सपो পপি এিি৭৯৭ ১৭ চীন বপন
| लत् (उपहरे ) उपहरन्ति कुथिलपानित येन तस्मिन् व्यवहारे |
ववाहे হিট জাপান কা পরী
अन्न कृतो बहुलसिलते करणे अच ( यत् ) उक्तम् ( उषराः ) दिशः |
उपगडइलति दिङ्ना० निघ० १।६( आपन्धत् ) सवत ( मच्वशसः)
| मधृनि मघुराप्यणीस्पुद्कानि यासु ताः ( नष्यः) सरितः ( चत्तखः }
अतः सख्याकाः ।॥ ६ ।
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ऋन्वयः--हे मनष्या धष्नाभिरस्प दस्मस्येन्द्रस्य समाद्यध्य-
क्षस्थ स्लनयित्नोर्बो पहर यत्ययक्चतमं चासनम दंसः कमास्ति तदु
। विदित्वाऽऽचरणीय यहङान कमणा मध्वणंसो नदयश्चनस्र उपरा
दिद्रोऽपिन्वत् सेवते सिंचति स विद्यया सम्पर् सेवताम् ॥ ६॥
भावाथः-ज्रतरष्टेषाल०-- मनुष्यैः अ्रष्टलमानि कमणि
| संसेन्थ यज्ञमनुष्ठाय राज्य पालापत्वा सर्वासु दिक्षु कीसिदष्टिः
' संप्रसारणीयात ॥ ६ ॥
पदाथेः-हे मनृष्यो तुम लोगों को उचित है कि ( अस्य ) इस ( दृस्पस्य)
| दुःख नह करने वाले समाध्यत्ञ वा बिल्ञुतीके ( उपहर ) झटिलता यक्ता छय-
বরায में ( यत् ) ज्ञा ( प्रयन्ञतमम ) अत्यन्त पन्ने योग्य ( चारुतमम ) आते
सन्दर ( दंसः ' विद्या वा सखों के भानने का हेतु ( के ) कमे ( अल्ति ) है
( तदु ) उसका जाने कर आआाचर ए करना वा जिन के इस प्रकार के कभे से ( म-
ध्वणेसः ) मधर जल वाली ( नवः) नदी अर् ( चख) चार् ( उपरा: )
दिशा ( अपिन््रत् ) सवन वा सचन करती ईं | उन दोनों को विद्या स झच्छे
प्रकार सेवन करना चाहिये ॥ ६ ॥
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০ সাগর ০০৯৯ -
भावाथः--हस मत्र में श्तपाले०--मनष्यों को चाहिये कि अति उत्तम
उत्तम कर्मों का सेदन यज्ञ का अनुष्ठान ओर राज्य का पालन करके सब दि.
| शाओं थे कोचि की वर्षा करें ॥ ६ ॥
पुनः सं कीटका इत्यु ° ॥
फिर सभाध्यक्ष केसा हो इस बि० |
সপ বলধা খাতার '
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