बिचालै | Bichalai

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Bichalai by पुरुषोत्तम छंगाणी - Purushottam Chhangani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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+ ७ ~ 3 विचाठे ` सुम स्नाण कर बाथरूम सू वारे आता ई रघु रो माथो ठणकै} मन माय बको पडे। अचूभै मे डरपतो अठै-वठै निजरा घुमावै! मूढे री चमक माथे हेकाहेक मांदगी बिछ जावै। हिंवडै मे अमूज री हूक ज्यू उठे कै आज घर माय इत्ती गजब री सायति क्यू है? अच्चू री खटपट नै कई हुयग्यो है? रोज तो वा खुद सू ई बाता करती दिखती। कदै उण माथै खीजती लाधती। कदै काम री झूझक मे बडबडावती रा दरसण हुवता। पण आज फगत सून्वाड री सू-सू ई सुणीजै। ड्रेसिग रूम रै बारणै सू झाकै। अच्चू नै डाइनिंग टेबल री कुर्सी माथै बैठयोडी देख रघु री घबराट कमती हुवै अर वो तइयार हुवण मे लाग जावै। आजै तो म्है टैमसर हू। - कब्ठाई मे घड़ी बाधतो रघु डाइनिग टेबल खत्रै आवै। कुर्सी माथे वैठतो आदत मुजब मस्ती रे रग मे मुककतो बोलै- सर जी अवै तो कोई सिकायत कोनी! अच्चू इणरो कोई जवाव कोनी देवै तो रघु फेर थोडो डबकीजै। लागै रघु री मस्ती अच्चू री चुपी री गरमाट सू बाफ बण उड जावै। रघु अमूजारी मे समझ कोनी सके कै अच्चू रै आज काई हुयग्यो है! नाड नीची किया मून क्यू झाल राखी है। रघु सोचै कै स्यात वा नाराज होसी। इण कारण खुसामद रै लहजै मे होल्ै-होके रणकै- अच्चू राणी गुलाम सू जे कोई गुस्ताखी हुयमी हवै तो मैरबाणी कर माफी वख्सो जी। फेर ई वा चुप। दूजो कोई दिन हुवतो तो वा अवस कैती कै जाओ माफ कर्यो। रघु गभीर हुय र घवराट सू अच्चू रो मूडो ऊचो उठावै। जोवै ओ करई अच्चू री आख्या सू तो आसुवा री बूदा ढक्कै। रघु कक पृष्ठे उण सू पैला बेवाकै ८9




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