अनेकान्त | Anekant

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Anekant  by जैनेन्द्र कुमार - Jainendra Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उदारमना स्थ० बाबू छोटेलाललजी च भी कन्या की पढ़ाई का अिक्र प्राने पर श्राप उसे शारा मिजवाने का ঘহামহা देते थे । সাদ झाल इण्डिया हा,मैनिटेरियन लोग प्रागराकी अबन्यकारिणी कमेटी के उपतभापति व सदस्य अनेक वर्षों तक रहे है । झपराधियों की देखमाल कर उन्हें सुमार्ग मे लाने बानी छेशा8३1-91८7-८४६ /५०००७(109 कमेटी के प्राप অহম্ম रहे है, इस सस्था के प्रधान सरक्षक भारत के राष्ट्रपति थे एब बपाल के अनेक मुख्याधिकारी इसके सदस्य रहने थे । श्राप मन्‌ ४३ में भारतीय जेन परिषद्‌ कलकत्ता के सक्रिग्र सन्‍्त्री चुने गये थे। इस सस्या का मुख्य उदेश्य जंन साहित्य मौर सस्कृति का प्रचार व प्रसार करना था। इसके सक्वावधान में अनक विद्वानों के साप्याहिक, मासिक सभाप्रो में भाषण होते थे, जिन्हें प्रकाशित भी कराते थे गृणा इ डला ए #0फटशाणा সী 01760 ০1 ४॥1-/:४५०105101 नामक सम्रह प्रकाधित किये गये थे । श्राप भ्राल इण्डिया दिगम्बर जेन परिषद्‌ की प्रबन्ध कारिणी समिति के सदस्य रहे है । प्राप भ्राल दण्डिया म्यूजिक कान्फम, कलकत्ता के उप-ममापति रहे है। श्राप [का 25502थ10ा 01 कलाध्वा प्रहाला€ के १६४४ मे ४७ तके कोपाध्यक्ष रहे है। १९१३९ मे इण्डटियन रिसर्च इन्स्टीट्यू2 के सदस्य रहे है । भ्राप सन्‌ ५० से ५७ तक प्राकृत टेब्टस सोसाइटी के सदस्य रहे है। इस गत्या के सरक्षक डा० राजेन्द्र प्रसादजी थे, उन्होने इस समस्‍या के लिए बहुत भ्रयत्न किये थे। इस सस्था का कार्य करते हुए ब'बूजी राजेटड्र बाबू सम्पकं मे प्रये । জজ সাঘ হলক্ষলা জী লাহলাহী रिलीफ सोसाइटी, पिजरापोल सोसाइटी भादि सर्व-हित- कारी प्रनेक संस्थाप्रों के सदस्य रहे है। कलकत्ता दि० जैन समाज की प्राय सभी सस्याप्रो के महत्वपूर्ण प्रायो- जनों में प्रापका योगदान किस्ती-न-किसी रूप में अवश्य रहना धा । श्री दिगम्बर जैन प्रान्तीय समा बम्बई के मुख्य पत्र जैन मित्र के हौरक जयन्ती उत्सव का २ श्रप्रेल ६० को झापने उद्घाटन किया । झापने भ्रपने उद्घाटन भाषण में 'जेनमित्र' का इति- हास सक्षिप्त मे प्रस्तुत कर दिया था | श्री जेन सिद्धान्त भवन प्रारा के २५-१२-६३ को हुए हीरक जपन्‍ती महोत्सव के श्राप स्वागताध्यक्ष थे। इम प्रवसर पर जेन साहित्य एवं पुरातत्त्व के सेवकों को 'सिद्धान्ताचार्यय उपाधि देकर सम्मान दिया गया था, उमकी मूल प्रेरणा में श्रापका भो हाथ था । भ्रापको जेन पुरातत्व स बहुत दि धी। प्रापका पुरातस्व विक्षेपो यथा-डा० बी° मी° छाक्डा ५४, # शशि. 0 2 श्री एच० एन० श्रीवास्तव, पण्डित भाधो- स्वरूप यत्स, भ्रशोककुमार भट्टाचायं श्री क्षिवराम मूर्ति, थी टी० एन० रामचन्द्रन भादि से बहुत मैत्रोपूर्ण सम्जन्ध रहे है। ये मब पुरातत्त्व विभाग में उच्च पदों पर प्रासीम थे इन मकरे जरिये प्रपि जेन सामप्री प्राप्त करने के निदु हमेशा प्रयत्नशीन रहने भे । प्रापने पुरातस्वश्रेभ के वजीभूत होकर जंन पुरातन पश्रवशपों की खोज के लिए भारत के विभिन्‍न प्रदेशों की म्नेक बार यात्राएँकी थी। आपको पुरातत्व की अ्भिरुचि एवं सेवाप्रो के सम्म।नार्थ भारत सरकार ने भ्रापको सन १६४०२ मे पुरातत्व विभाग का प्रवेतनिक 0.012011010श1 बनाया था । श्राप पुरातत्व सम्बन्धी विषयो पर भ्रनक लेख प्रकाशित कराते ये । प्रापने प्रपनी विभिन्न गात्राप्नों में जन पुरातत्व सम्बन्धी बहुत-सी सामग्री एकत्रित की थी, जिनमे प्राचीन सस्कति के झनेक सुन्दर-सुन्दर कलापूर्ण दुर्लभ चित्र भी है, जिनमे कुछ स्थानीय बेलगछिया उपयन के एक हाल में सुन्दर ढग से लगाये गये हे। श्रापकी इच्छा थी कि पूरे हाल में ऐसे जिश्र लगा दिये जानो दर्शनाथियों को जैन सस्क्ृति के प्राथोन गौरव से परिवित करावे । किन्तु वह दच्छा पूर्ण नहीं हो सकी | वे रुग्ण दाय्प्रा से भी बराबर दसके लिए भ्रपनी प्रेरणा देते रहने थे । झापने खडगिन्उद्यगिरि पर एक झोजपूर्ण पुस्तक लिखी । झापने कराकत्ता जैन मूत्ति-यन्त्र श्रह भी सन्‌ १६२३ में प्रकादिग किया था, तत्पश्चात्‌ जंन बिविलियो-




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