सद्विचार मुक्तावली | Sudvichar Muktavali
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
68
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)फर्मधीर | |
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ये कंपा सकती कभी जिसके कलम को नहीं।
भूलकर भा वह नहां नाकाग रहता है कहाँ।॥ ४॥
चिलचिढती धूप को जो चांदनी देव बना |
काम पहने पर करें जो शेर का भी सामना ||
हँसते इंसते जो चबा लेत लोह फे चना।
“है कठित कुछ भी नहीं” जिनके है जी में यद्द ठना ||
कोप कितने ह चरु पर वे कभी थक्ते नहीं ।
फोनसी है गांठ जिसको खोल वे सकते नहीं || ५॥
करी को वे ৭লা दते दै सोन की उन्ती ।
रेग- का करते दिखा दंते हैं थे सुन्दर खली ॥
' वे बबूलों में छगा देते दे चुपे को कछी |
काककों भी वे ভিড হন ই कोकिल+काकली ॥
हैं खिला दुते अनूठे वे कमल |
हैं उकठे काठ में भी फूल फल ॥ ६ ॥
कामको आरंभ करके यों नहीं जो चोड़ते ।
सामना करके नहीं जो मूलकर मुंह मोंइते ॥
| गगन के फू वातो से दथा नदीं तोडते ।
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संपदा मनसे करोड़ों की नहीं जो जोडते ॥
भ
बन् गया द्ीरा उन्हीं क॑ द्वाथ स हैं कारबन |
कांच को करके दिखा दते हूं वे उज्चरू रतन ॥ ७॥
क
भ
पवेत] का कारक्र सडक घना दतदहव्।
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