अध्यापक शिविर खीचन | Adhyapak Shivir Khichan

Adhyapak Shivir Khichan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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देव-गुरु ३ লক मुक्तिदाता देव कैसे हो सकता है ? अज्ञान के कारण जो स्वयं मुक्ति का मार्ग नही जानता हो, जो आराधना करनेवाले को ऐसे वरदान देता हो कि जो स्वयं उसी क लिए दु खदायक वन. जाय भौर अपने बचाव के लिए दूसरे देव की शरण मे जाना पड़े और दूसरा देव, सुन्दर स्त्री का रूप बना कर उस महाविपत्ति मे उस परम आराध्य देव की रक्षा करे, यह स्थिति उस देव के देवत्व का खोखलापन स्पष्ट कर रही है । इन देवो मे निद्रा का उदय भी है। इनके चरित्र वर्णन मे ऐसी बाते सुनी जाती है कि जब भक्त ने विपत्ति से आतकित होकर भगवान्‌ का.स्मरण किया, तव भगवान्‌ नीद में थे। भक्त कौ आत्तं पुकार उन तक पहुँची, वे नीद से चौंक पडे और भक्त की सहायता के लिए दौड पडे । इस प्रकार अज्ञान, निद्रा, मोह, असयम, चंचलता, अन्तराय आदि दोषो से युक्त देव को “सुदेव ' केने माना जा सकता है ? आप देव के १८ दोषो पर विचार करे, तो आपको ज्ञात होगा कि इतर देवो मे ये सभी दोष विद्यमान हैं और ये दोष उन खुद की बन्धनयुक्त अवस्था को सूचित करते है। ऐसे देव अपने उपासक को किस प्रकार मुक्त कर सक्ते है? - शाप सोचे कि अन्य त्तीथिक आराध्य देव, स्त्री रखते हु, द्रव्य रखते हैं और शस्त्र ग्रहण कर युद्ध भी करते हैं तथा अपने विरोधी का दमन एवं संहार भी करते हैं। यदि एषे ज्ञान, मोह, काम, कोध एवं अस्नयमादि दोपवाले को थी देव मानना है, तो राजा-महाराजो भी देव हो सकते हैं। उनके হালিঘাঁ জী बहुत होती है, धन भी होता है और अन्य भोग के साधन भी




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