बीकानेर के व्याख्यान | Bikaner Ke Vyakhyan
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
410
श्रेणी :
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पं. शोभाचंद्र जी भारिल्ल - Pt. Shobha Chandra JI Bharilla
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चीकनिर के व्याग्यान ] [४
স্পা ~~~ ~ ~~ ~ ~ = ~~~ ~~~ ~~~ -~------ ~~ जनः -~-~~ ~~~
है ? चह तो यही कटेगा किं णेसी वलि की याज्ञा ठन वाला
ईश्वर नहीं है सकता, कोई हिंसालोलुप अनाय हे सक्रना है
और ऐसा शास्त्र भी क्रिसी अनाय का ही कहा हुआ है ।
किसी जमाने मे नरमेध भी किया जाता था और पशुमेध
तो साधारण वात हो गई थी । नरमेध में मछुप्प की और पथु-
मेध में पशुओं की वलि टी जाती धी । नग्सेधकी चान जाने
दीजिए । बच्द तो श्रणित है ही, पर पशुमेध भी कम घ्रणित नहीं
है। निदेयता के साथ पद्मु्मों को आग में क उना शाति
प्राप्त करमे का कैसा ढोंग है, यह बात पक आख्यान ड्रारा
समभाना ठीक होगा ।
एक रज्ञा पश्चु का यश्ञ करने लगा । राज का मन््नी न्याय-
घील, दयाहु ओर पश्षपानरह्ति था । उसने विचार किया--
शांति के नाम पर वध करना कौन-सी शांति है ? क्या दूसरा
को घोर अशांति पहुँचाना ही शांति प्राप्त करना है ? अपनी
शांति की आशा से दूसरों के प्राण लेना जधन्यतम स्वार्थ है ।
कया इसी निरृष स्वार्थ मे जति विराज शान रहती 2 ? शांति
देवी की सोस्य सूर्ति इस विकराल और अधम हत्य में नहीं
रह सकती | उसने यज्ञ कराने वाले पुरोहित से पूछा--श्राप
इन भूक पशुझ्रों को श्रद्मांति पहुँच/कर शांति किस प्रकार
चाहते हैं १
पुरोश्टित ने कहा--दन बकरे का परमात्मा के चाम पर
बलिदान किया जायभा | इस चलिदान के पताप से सबको
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