बीकानेर के व्याख्यान | Bikaner Ke Vyakhyan

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Bikaner Ke Vyakhyan  by जवाहरलालजी महाराज - Jawaharlalji Maharajपं. शोभाचंद्र जी भारिल्ल - Pt. Shobha Chandra JI Bharilla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चीकनिर के व्याग्यान ] [४ স্পা ~~~ ~ ~~ ~ ~ = ~~~ ~~~ ~~~ -~------ ~~ जनः -~-~~ ~~~ है ? चह तो यही कटेगा किं णेसी वलि की याज्ञा ठन वाला ईश्वर नहीं है सकता, कोई हिंसालोलुप अनाय हे सक्रना है और ऐसा शास्त्र भी क्रिसी अनाय का ही कहा हुआ है । किसी जमाने मे नरमेध भी किया जाता था और पशुमेध तो साधारण वात हो गई थी । नरमेध में मछुप्प की और पथु- मेध में पशुओं की वलि टी जाती धी । नग्सेधकी चान जाने दीजिए । बच्द तो श्रणित है ही, पर पशुमेध भी कम घ्रणित नहीं है। निदेयता के साथ पद्मु्मों को आग में क उना शाति प्राप्त करमे का कैसा ढोंग है, यह बात पक आख्यान ड्रारा समभाना ठीक होगा । एक रज्ञा पश्चु का यश्ञ करने लगा । राज का मन्‍्नी न्याय- घील, दयाहु ओर पश्षपानरह्ति था । उसने विचार किया-- शांति के नाम पर वध करना कौन-सी शांति है ? क्या दूसरा को घोर अशांति पहुँचाना ही शांति प्राप्त करना है ? अपनी शांति की आशा से दूसरों के प्राण लेना जधन्यतम स्वार्थ है । कया इसी निरृष स्वार्थ मे जति विराज शान रहती 2 ? शांति देवी की सोस्य सूर्ति इस विकराल और अधम हत्य में नहीं रह सकती | उसने यज्ञ कराने वाले पुरोहित से पूछा--श्राप इन भूक पशुझ्रों को श्रद्मांति पहुँच/कर शांति किस प्रकार चाहते हैं १ पुरोश्टित ने कहा--दन बकरे का परमात्मा के चाम पर बलिदान किया जायभा | इस चलिदान के पताप से सबको




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