अथ योगसमाचारसंग्रह | Ath Yogsamacharsangrah

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Ath Yogsamacharsangrah by डॉ गोविंद प्रसाद भार्गव - Dr Govind Prasad Bhargava

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६ )*: लगती है। मामूली समय इसका यह है के जितनी देरमें आशेरों एक मरतवा खूनका दोरा होचुके सुषुम्ना कायम रह तीहे। प्रागवायुकी जितनी थोड़ी मिकदार फेफड़ार्म पहुँचे- गी उतनाही थका खून याने रूघिरका कमजोर होजायगा कयोंके उतनाही कम रुधिर नॉड़ियोंगें गमन करेगा जब रुधिर गाढ़ा होता है। जेसे खाना खानेके कुछ देर पीछे मिज्ञा याने मोजनके जुज्ञके मिलनेसे तो गोढे खूनकी मिकदार फेफड़ेगें ज्यादा आनेसे फेफड़े भारी होजाते हैं। और हवा की आमद रफ्तमें प्री सुलायमियत वाली तासीरसे मदद नहीं करसक्तें जिसका नतीजा यह होता है के फेफड़े रुधिरके मेले पदा्थोकी रेचक समय परे तोरसे निकाल नहीं सक्ते ओर वायुके जोर वाले वेगको नहीं सहन करसक्त । जब- तक साथ रुधिर इन मेले पद्यथसि थीरे धीरे साफ न हो जाय ऊपर लिखी समयमेंही अग्नि और आकाशतत बता - करतेहें ओर जब रुचिर मामूली पतला होता है जैसे वहुत- साग मिकदार्‌ पानी पीनेके एक या आधी-घड़ी पीछे तो हवा फेफड़ोंमें खूब जोरस आती जाती है तव जल शौर - पृथ्वीतत्वय रहता है क्‍्योंके फेफड़े प्रे बलसे काम करते हें आर उन पर मैले रुचिरका वोक नहीं होता याने. इतनी समयंम रुषिस्में मेले पदाथे मोजूद नहीं होते । ' « सवाल | क्‍या सबब हे के दाहिने स्व॒स्में छूरता और तेजी है और बांयेभे शान्ति है ?




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