स्वामी रामतीर्थ [ भाग १4] | Swami Ramtirth [ Part 14 ]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारत का भविष्य: ११ आर भकाश देने वाली शक्ति हैः श्रोर किसी प्क इन्धिय के देवता स श्रभिप्राय ब्रह्माएड की समष्टि इद्रिय है; जैसे आध्यात्मिक ओरआधिदेधिक । चज्षुदेचता सब , प्राणियों की चल्ु-है, जो आदित्य.कहुलाता है, ओर जिसका चिन्ह ( मूर्ति ) ब्रह्मारड का नेच अर्थात्‌ भोतिक. सूय दै । हस्तेल्धिय का देवता सब हाथो की शक्ति है, जो इन्द्र कहलाती है। पाद-देवता सब पाओ की शक्ति है, जिले विष्णु कहते हैं। इसी प्रकार अन्यान्य देवताश के विषय मे समभि । इस तरद देवयक्ष से ठीक.२ श्रभिप्राय श्रपनी व्याप्टि इन्द्रियों को अह्माएड की समष्दि इन्द्रियों में अपेण करना है। इन्द्र देवता को आहुति देने से तात्पय इस भूमि पर समस्त हाथों-के हित में अपना व्यप्टि हाथ अपेण करना है, श्रथोत्‌ देश के सब हाथों के हित में काम करना इन्द्रःदेव-यण है। आदित्य देवता को आहुति देने से अभिप्राय ब्रह्माएड के संब नजरों में ईएवर का अस्तित्व भान करना है, अथौत्‌ सब नेत्रों का सम्मांन ओर आदर करना अपने अलु: चित व्यवहार से किसी की दाण्टि को कुपित न॑ करना; वल्कि जिस किसी की भी दृष्टि अपने पर पड़े, उसे प्रसन्‍्नता ( क्ृृपादष्ठि ), आशीर्वाद, ओर प्रेम से पेश आना; अपनी ` व्यष्टि नेबशन्दिय को ब्रह्मारुड की समष्टि नेन-दद्धिय के तरै छेसी মনৰ শনি জা লক্ষি स यण करना किं परिच्छिन्न अहंकार का अधिकार नितान्त लुप्त होजाय ओर खमष्टि नेत्र ( आदित्य) स्वयं आप के नेता द्वारा ही भासमान होने कग; यद श्रादित्यद्देवे-यक्त है । ब्रहस्पति देवता को आहुति देने से श्रमिग्राय अपनी व्यष्टि. युद्धिको देशंकी समष्टि चुद्धि के अर्पेण कंरना है, अथवा देंश की भलाई में इस प्रकार चिन्तन करना हैं कि जिस से हम में ओर : हमारे: देश निवा- में कोई. अंन्तर न रहे, ओर देश के. कल्याण में




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